पुस्तकों को ज्ञान का सागर कहा गया है। बौद्धिकता का केंद्र कहे जाने वाले पुस्तकालयों की कम होती जा रही उपयोगिता समाज के लिए चिंता का विषय है। जिले के इकलौते राजकीय पुस्तकालय की स्थिति यह है कि मात्र सत्तर सदस्य बने हैं। बौने संसाधनों से पाठक संतुष्ठ नहीं है। कहानी, नाटक, उपन्यास की पुरानी पुस्तकें तो अट्ठारह हजार से अधिक डंप है। लेकिन बदले परिवेश का साहित्य न मिलने से युवा पीढ़ी पुस्तकालयों से नहीं जुड़ पा रही है। खासकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र इस बात से निराश हैं कि कैरियर व स्पोर्टस से संबधित पत्रिकाए नहीं मिल पाती हैं।
पुस्तकालय ऐसे केंद्र हैं जहां साहित्य का सही आइना दिखता है। कहानी, नाटक, उपन्यास सहित साहित्य की अन्य विधाओं की पुस्तकों का भारी भंडार हर पंहुचने वाले को आकर्षित करता था। बौद्धिकता के साथ मनोरंजन के कुछ पल गुजारने के लिए पुस्ताकलय का सदस्य बनना एक शौक ही नहीं बल्कि व्यवस्था से जुड़ा हुआ था। सुबह शाम पुस्तकालय जाकर मन पसंद किताबों का अध्य्यन करना और आपस में देश की राजनीतिक सहित समाजिक पहलुओं पर वार्ता करके एक दूसरे से ज्ञान बांटने की जो विधा पुस्तकालयों से मिलती है वह दूसरी जगह नहीं है। इसी उपयोगिता के चलते तो शहर व महानगरों में जगह-जगह पुस्तकालय खुले हुए थे। इनका उद्देश्य व्यवसाय नहीं बल्कि ज्ञान का सद्पयोग था।
डेढ़ लाख की आबादी वाले इस शहर में कहने को तो दो पुस्तकालय हैं लेकिन संसाधनों की कमी के चलते दोनों पुस्तकालय बौद्धिक की चाहत पूरी नहीं कर पा रहे हैं। नगर पालिका की कमला नेहरू लाइब्रेरी की स्थित यह है कि एक छोटे से कमरे में स्थांतरित कर दी गयी है। जहां न तो पाठकों के बैठने के लिए पर्याप्त जगह है और न ही मनपसंद पुस्तकों की उपलब्धता। पहले कभी इस लाइब्रेरी में शहर ही नहीं ग्रामीण क्षेत्र के सैकड़ों लोग जुडे़ थे। आज स्थित यह है कि स्थाई सदस्यता के लिए पुस्तकालय बाट जोह रहा है। बताते हैं कि बजट के अभाव में पुस्तकालय में नई किताबें नहीं आ पा रही हैं। पाठकों के नाम पर आस पास के दो चार लोग पंहुचकर खानापूरी कर रहे हैं।
जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के समीप संचालित राजकीय पुस्तकालय कर्मचारियों की कमी व संसाधनों के अभाव का सामना कर रहा है। पुस्तकालय को साल में लगभग तीन लाख का बजट मिलता है। उसमें महंगी किताबें नहीं आ पाती। अखबार व कुछ मासिक पत्रिकाएं मंगाकर काम चलाया जा रहा है। पुस्तकालय से जुडे़ ज्ञानेंद्र ने कहा कि रोजगार समाचार समय से नहीं आता। प्रतियोगी परीक्षाओं की पत्रिकाओं की कमी रहती है। अजय सिंह कहते हैं कि कैरियर व स्पोर्टस से संबधित साहित्य न मिल पाने से युवा वर्ग को पुस्तकालय का अधिक लाभ नहीं मिल पा रहा है। बाकरगंज के अनिल कुमार कहते हैं कि पुस्तकालय नियमित खुलता है। पठन पाठन की व्यवस्था भी सही है लेकिन जरूरत की कुछ किताबों का अभाव पाठकों को खटकता है। साहित्य की बदलती विधा में किताबों व पत्रिकाओं की काफी कमी है। पहले के कहानी, नाटक, उपन्यास की हजारों ऐसी किताबें हैं जिन्हें वर्षो से पलटा ही नहीं गया। राजकीय पुस्तकालय के प्रभारी राजकुमार का कहना है कि किताबों की खरीद फरोक्त शासन स्तर पर की जाती है। यहां तो साल में मिलने वाले तीन लाख के बजट पर ही अखबार व पुस्तकाओं की व्यवस्था करनी पड़ती है। उन्होंने बताया कि सूचीकार व चौकीदार के पद कई वर्षो से रिक्त हैं। शासन को कई बार अवगत भी कराया गया लेकिन नियुक्ति नहीं हो पा रही है। स्टाफ की कमी से पुस्तकालय के संचालन में काफी दिक्कतें होती हैं।
पुस्तकालय ऐसे केंद्र हैं जहां साहित्य का सही आइना दिखता है। कहानी, नाटक, उपन्यास सहित साहित्य की अन्य विधाओं की पुस्तकों का भारी भंडार हर पंहुचने वाले को आकर्षित करता था। बौद्धिकता के साथ मनोरंजन के कुछ पल गुजारने के लिए पुस्ताकलय का सदस्य बनना एक शौक ही नहीं बल्कि व्यवस्था से जुड़ा हुआ था। सुबह शाम पुस्तकालय जाकर मन पसंद किताबों का अध्य्यन करना और आपस में देश की राजनीतिक सहित समाजिक पहलुओं पर वार्ता करके एक दूसरे से ज्ञान बांटने की जो विधा पुस्तकालयों से मिलती है वह दूसरी जगह नहीं है। इसी उपयोगिता के चलते तो शहर व महानगरों में जगह-जगह पुस्तकालय खुले हुए थे। इनका उद्देश्य व्यवसाय नहीं बल्कि ज्ञान का सद्पयोग था।
डेढ़ लाख की आबादी वाले इस शहर में कहने को तो दो पुस्तकालय हैं लेकिन संसाधनों की कमी के चलते दोनों पुस्तकालय बौद्धिक की चाहत पूरी नहीं कर पा रहे हैं। नगर पालिका की कमला नेहरू लाइब्रेरी की स्थित यह है कि एक छोटे से कमरे में स्थांतरित कर दी गयी है। जहां न तो पाठकों के बैठने के लिए पर्याप्त जगह है और न ही मनपसंद पुस्तकों की उपलब्धता। पहले कभी इस लाइब्रेरी में शहर ही नहीं ग्रामीण क्षेत्र के सैकड़ों लोग जुडे़ थे। आज स्थित यह है कि स्थाई सदस्यता के लिए पुस्तकालय बाट जोह रहा है। बताते हैं कि बजट के अभाव में पुस्तकालय में नई किताबें नहीं आ पा रही हैं। पाठकों के नाम पर आस पास के दो चार लोग पंहुचकर खानापूरी कर रहे हैं।
जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के समीप संचालित राजकीय पुस्तकालय कर्मचारियों की कमी व संसाधनों के अभाव का सामना कर रहा है। पुस्तकालय को साल में लगभग तीन लाख का बजट मिलता है। उसमें महंगी किताबें नहीं आ पाती। अखबार व कुछ मासिक पत्रिकाएं मंगाकर काम चलाया जा रहा है। पुस्तकालय से जुडे़ ज्ञानेंद्र ने कहा कि रोजगार समाचार समय से नहीं आता। प्रतियोगी परीक्षाओं की पत्रिकाओं की कमी रहती है। अजय सिंह कहते हैं कि कैरियर व स्पोर्टस से संबधित साहित्य न मिल पाने से युवा वर्ग को पुस्तकालय का अधिक लाभ नहीं मिल पा रहा है। बाकरगंज के अनिल कुमार कहते हैं कि पुस्तकालय नियमित खुलता है। पठन पाठन की व्यवस्था भी सही है लेकिन जरूरत की कुछ किताबों का अभाव पाठकों को खटकता है। साहित्य की बदलती विधा में किताबों व पत्रिकाओं की काफी कमी है। पहले के कहानी, नाटक, उपन्यास की हजारों ऐसी किताबें हैं जिन्हें वर्षो से पलटा ही नहीं गया। राजकीय पुस्तकालय के प्रभारी राजकुमार का कहना है कि किताबों की खरीद फरोक्त शासन स्तर पर की जाती है। यहां तो साल में मिलने वाले तीन लाख के बजट पर ही अखबार व पुस्तकाओं की व्यवस्था करनी पड़ती है। उन्होंने बताया कि सूचीकार व चौकीदार के पद कई वर्षो से रिक्त हैं। शासन को कई बार अवगत भी कराया गया लेकिन नियुक्ति नहीं हो पा रही है। स्टाफ की कमी से पुस्तकालय के संचालन में काफी दिक्कतें होती हैं।
aapse sahmat hun..par dos vyawstha ke sath sath hamara bhi hai
जवाब देंहटाएंसभी जगह पुस्तकालयों की यही स्थिति है। चिंतनीय है। अच्छा विषय उठाया है आपने।
जवाब देंहटाएंसभी जगह यही हालत है। सामाजिक होने का स्वर ही मंद है। पर जल्दी ही यह तेज भी होगा।
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