कुपोषण को दूर कर बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य के लिहाज से शुरू की गयी मिड-डे-मील योजना खामियों का शिकार हो गयी है। ग्राम प्रधान हों या फिर सभासद बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता किसी को नहीं है। गुणवत्तायुक्त भोजन तो कहीं दिया ही नहीं जा रहा। कुछ ऐसे विद्यालय हैं जहां के बच्चों को या तो भूखे पेट लौटना पड़ता है या फिर घटिया भोजन फेंककर आना पड़ता है। सप्ताह भर के अलग-अलग तय मीनू में इस तरह का खिलवाड़ किया जाता है कि बच्चे खाना देखते ही भिनक जाते हैं। शहर के तो कई स्कूल ऐसे हैं जहां मानक से आधा खाने की भी खपत नहीं होती है। एक विद्यालय संचालक ने बताया कि एक माह का खाद्यान्न तीन माह तक भी नहीं खप पाया है। शहर के बच्चों को यह खाना अच्छा ही नहीं लगता है।
मजे की बात तो यह है कि परिषदीय स्कूलों में किचन शेड बने हुए हैं, लेकिन किसी में खाना नहीं बन रहा है। सभासदों के घर चूल्हा जलता है और वहीं से रिक्शे में भगोना रखकर स्कूल लाया जाता है। कई बार चेतावनी के बाद भी सभासद किचन शेड में खाना बनवाना सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं। एक दर्जन स्कूल तो ऐसे हैं जहां बच्चों को पका और गर्म भोजन देने के बजाय सभासद डबल रोटी व बिस्कुट के पैकेट भेजकर काम चला रहे हैं। ऐसा नहीं है कि यह जानकारी शिक्षा विभाग के अधिकारियों व प्रशासन को नहीं है। पिछले दिनों जिलाधिकारी ने नगर क्षेत्र की मिड-डे-मील की घटिया व्यवस्था पर बेसिक शिक्षा अधिकारी को निर्देश दिये थे कि स्वयंसेवी संस्थाओं के आवेदन लिये जायें। विभाग ने विज्ञापन जारी कर आवेदन मांगे हैं जिसमें अभी तक एक दर्जन संस्थाओं ने दावा किया है। बताते हैं कि जल्द ही नगर क्षेत्र की मिड-डे-मील व्यवस्था किसी सशक्त स्वयंसेवी संस्था के हाथ में सौंप दी जायेगी। प्रशासन नगर का यह प्रयोग ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रभावी करने का मन बना रहा है। तीन दर्जन से अधिकग्राम पंचायतें ऐसी हैं जहां नोटिस देने के बाद भी मिड-डे-मील व्यवस्था सुधर नहीं रही है।
बेसिक शिक्षा अधिकारी आरके पंडित ने यह स्वीकार किया कि स्वयं सेवी संस्थाओं से कोटेशन सहित आवेदन मांगा गया है। उन्होंने कहा कि परीक्षण करने के बाद संस्थाओं का साक्षात्कार लिया जायेगा। नियम और शर्तो के साथ ही यह व्यवस्था प्रभावी की जायेगी।
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