17 सित॰ 2008

फतेहपुर के प्रमुख पर्यटक व पुरातात्त्विक स्थल

फतेहपुर के प्रमुख पर्यटक व पुरातात्त्विक स्थलों में शिवराजपुर, रेंह , खजुहा, बिन्दकी, तेंदुली , बावनी इमली, भिटौरा और हथगाम आदि यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से हैं। इसके अतिरिक्त कई मस्जिद और मंदिर भी है जहां पर्यटन का मजा लिया जा सकता है। गंगा और यमुना नदी के तट पर स्थित फतेहपुर उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है।यह जिला चारो ओर से बड़े शहरों यथा कानपुर , इलाहबाद , रायबरेली ,लखनऊ , बांदा आदि से घिरा हुआ है ,शायद यह इसका सौभाग्य है या दुर्भाग्य , इसका निर्णय आपके हाथफतेहपुर जिले की स्थापना 10 नवम्बर 1826 ई. में हुई थी। धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह स्थान शहीद जोधा सिंह अटैया , शहीद दरियाव सिंह और कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों तथा प्रसिद्ध हिन्दी राष्ट्र कवि सोहन लाल द्विवेदी की मातृभूमि है।कुछ प्रमुख स्थलों के बारे में विवरण निम्न लिखित है

खजुहा
खजुहा गांव मुगल रोड पर स्थित है। यह गांव काफी प्राचीन है। इसका वर्णन प्राचीन हिन्दू धर्मग्रन्थ ब्रह्मा पुराण में भी हुआ है, जो कि 5000 वर्ष पुराना था। 5 जनवरी 1659 ई. में मुगल शासक औरगंजेब का अपने भाई शाहशुजा के साथ भीषण युद्ध हुआ था। औरंगजेब ने शाहशुजा को इस जगह के समीप ही मारा था। अपनी जीत की खुशी में उन्होंने यहां एक विशाल और खूबसूरत उद्यान और सराय का निर्माण करवाया था। इस उद्यान को बादशाही बाग के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त इस सराय में 130 कमरें है।आज की स्थिति में यह अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है

रेंह
यमुना नदी के तट पर स्थित रेंह बहुत ही प्राचीन गांव है। यह गांव फतेहपुर शहर के दक्षिण-पश्चिम से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। माना जाता है कि इस जगह से 800 ई. पूर्व के पुरातात्त्विक महत्व से जुड़े लेख प्राप्त हुए थे। इसके अलावा मौर्य काल, कुषाण काल और गुप्त काल के कई सिक्के और मूर्तियां प्राप्त हुई थी। दो दशक पूर्व भवगान विष्णु की प्राचीन मूर्ति इस गांव से प्राप्त हुई थी। वर्तमान समय में यह मूर्ति कीर्तिखेडा गांव के मंदिर में स्‍थापित है।

बिन्दकी
फतेहपुर से 30 किलोमीटर की दूरी पर बिन्दकी क़स्बा है। यह एक प्राचीन शहर है। इस शहर का नाम यहां के शासक राजा वेणुकी के नाम पर रखा गया था। इस जगह की पृष्ठभूमि काफी धार्मिक और ऐतिहासिक है। बिन्दकी सेनानी जोधा सिंह अटैया और कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों तथा प्रसिद्ध हिन्दी कवि राष्ट्र कवि सोहन लाल द्विवेदी की मातृभूमि है।


शिवराजपुर
गंगा नदी के तट पर शिवराजपुर गांव स्थित है। इस गांव में भगवान कृष्ण का प्राचीन मंदिर स्थित है। जिसे मीराबाई के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि मंदिर स्थित भगवान कृष्ण की मूर्ति की स्थापना मीराबाई ने की थी। वह भगवान कृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थी और मेवाड़ राज्य के शाही परिवार की सदस्य थी।


तेंदुली
यह गांव चौदहग्राम-बिन्दकी मार्ग पर स्थित है। इस गांव में बाबा झमदास का मंदिर स्थित है। माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति को सांप या कुत्ता काट लेता है तो वह व्यक्ति मनो-विकार की समस्या से पीड़ित होता है। इस मंदिर में आकर इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। यंहा एक मन्दिर है , जिसे गुप्त कालीन बताया जाता हैआजकल यह अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है


बावनी इमली
यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 में ब्रिटिश सेना द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फांसी दी गई थी। जिस जगह पर यह इमली का पेड़ है, लोगो का मानना है कि इस घटना के बाद इस वृक्ष की विकास रूक गया है। यह जगह खजुहा शहर के निकट स्थित है। वैसे मूल पेड़ आज सूख चुका है ,लेकिन एक नई पेड़ की शाखा पनप चुकी है ,जो आज उसका अस्तित्व बनाये हुए है


भिटौरा
उत्तरवाहिनी पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित भिटौरा विकास खंड मुख्यालय के रूप में स्थित है है। यह वह स्थान है जहां संत भृगु ने काफी लम्बे समय तक तपस्या की थी। इसी कारण इस जगह को भृगु ठौर के नाम से भी जाता है। यहां गंगा नदी उत्तर दिशा से प्रवाहित हो रही है इसी कारन यंहा का पौराणिक महत्व के साथ -साथ धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है

हथगाम
यह स्थान महान स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री गणेश शंकर विद्यार्थी और प्रसिद्ध उर्दू कवि श्री इकबाल वर्मा की जन्मभूमि है।


आगे कोशिश करूंगा की आप सभी को और फतेहपुर के बारे में और परिचित करा सकूं

फतेहपुर का एक और साहित्यिक व्यक्तित्व - जीवन शुक्ल

जीवन शुक्ल


जन्म: 03 अप्रैल 1932



जन्म स्थानखजुहा, फतेहपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
कुछ प्रमुख
कृतियाँ
झाऊ की ओट में गुलाब, तरासी आत्मा, जीवन सृजन
विविधकविता, गीत, नवगीत आदि विधाओं में कृतियाँ
जीवनीजीवन शुक्ल / परिचय


राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी का एक संस्मरण

एक दिन एंग्लो विद्यालय फतेहपुर में खूब सजावट की गई। कुछ समय बाद बच्चों को मिठाई वितरित की जाने लगी। धीरे-धीरे विद्यालय के अंदर और बाहर जनता को पता चला कि प्रिन्स आफ वेल्स भारत में कहीं आए हैं और उनके आने की खुशी यहां मनाई जा रही है। शहर में ऐसे लोग भी थे जो इसे खुशी का कारण नहीं मानते थे। छल तथा बल से शासन छीनने वालों की खुशी में बटने वाली मिठाई उनके लिए अपमान का प्रतीक थी। गांधी जी ने उनके आगमन का स्वागत नहीं किया। देश में ऐसे लोग भी थे जो उन्हे काले झंडे दिखा कर उनके आगमन के प्रति अपना विरोध दर्ज करा रहे थे। कुछ लोग शासकों के पक्षधर थे तो कुछ विरोधी।

विरोधी लोग मन ही मन लाट साहब के आगमन को अपनी खुशी नहीं मानते थे, लेकिन शासन से बटने वाली मिठाई वापस करने का साहस वे नहीं जुटा पा रहे थे। ऐसा कर वे संभावित और आशंकित विपत्तियां निमंत्रित नहीं करते थे, अत: इस तमाशे को चुपचाप देख रहे थे। तभी सोहनलाल ने चिल्लाकर कहा, ''मुझे नहीं चाहिए यह मिठाई। यह हमारा अपमान है। हमें जलाने वाले ही नमक छिड़क रहे है।'' सहसा सन्नाटा छा गया। मिठाई बंाटने वाले रुक गए। मिठाई लिए हाथ मिठाई फेंकने लगे और जो मिठाई लेने के लिए एक लंबी लाइन में लगे थे वे छिटककर हट गए। लड़कों का जुलूस फतेहपुर की गलियों में नारे लगाता घूमने लगा। सोहनलाल इस जुलूस के नेता थे।

आगे पढने के लिए यंहा क्लिक करें
साभार - जागरण - याहू - इंडिया

फतेहपुर के जिला विद्यालय निरीक्षक निलंबित

चतुर्थ श्रेणी की आठ नियुक्तियों में अनियमितता पाये जाने पर प्रमुख सचिव ने जिला विद्यालय निरीक्षक प्रेम प्रकाश को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। निलंबन अवधि के दौरान उन्हें निदेशक, माध्यमिक कार्यालय से संबद्ध किया गया है। इस मामले में जिलाधिकारी को आरोप पत्र जारी करने को कहा गया है। मालूम हो कि वर्ष 2007 में खागा तहसील क्षेत्र के चौधरी शिवसहाय सिंह इण्टर कालेज में आठ चतुर्थ श्रेणी कर्मियों की नियुक्ति की गयी थी। जिला विद्यालय निरीक्षक ने प्रशासक पद पर रहते हुए जब भर्ती की प्रक्रिया की तो प्रबंध तंत्र ने इसमें अनियमितताओं का आरोप लगाया। पूर्व अध्यक्ष मानसिंह सहित पूरी विद्यालय प्रबंध समिति ने मुख्यमंत्री से लेकर उच्चाधिकारियों तक इसकी शिकायत की। तब शासन ने इस मामले की जांच तत्कालीन जिलाधिकारी को तीर्थराज त्रिपाठी को सौंपी थी और उन्होंने अपर जिलाधिकारी अच्छेलाल से जांच करवायी। सूत्रों के अनुसार जांच में पाया गया कि आठ चतुर्थ श्रेणी कर्मियों की नियुक्तियों के लिये जो विज्ञापन जारी किया गया, वह गैर जनपद के अखबारों में प्रकाशित हुआ था। आश्चर्यजनक रूप से उक्त नियुक्तियों के लिए मात्र तेरह लोगों का साक्षात्कार लिया गया और उस समय नियुक्ति आदेश जारी कर दिया गया जब प्रदेश शासन ने भर्तियों पर रोक लगा रखी थी।


आगे पढने के लिए यंहां क्लिक करें
जागरण - याहू से साभार

मृतक आश्रितों को प्रशिक्षण में मिली छूट, वरिष्ठता का मिलेगा लाभ

मृतक आश्रित शिक्षकों के प्रशिक्षण के विवादित मुद्दे पर प्रमुख सचिव ने 31 दिसम्बर से 94 से 8 जनवरी 1999 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों को प्रशिक्षण से मुक्ति प्रदान करते हुए कहा है कि उन्हें वरिष्ठता प्रोन्नति नियमितीकरण का लाभ दिया जाये। इसके बाद के नियुक्त शिक्षक जिनकी सेवा पांच वर्ष पूर्व हो गयी उन्हें प्रशिक्षण तो लेना पड़ेगा लेकिन सेवा सम्बंधी लाभ प्रदान किये जायेंगें।

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने नार्वल स्कूल में बैठक कर प्रमुख सचिव के निर्देश पर खुशी जताते हुए कहा कि राज कर्मचारी संयुक्त परिषद शिक्षक कल्याण संघ के संयुक्त प्रयास से मृतक आश्रित शिक्षकों को यह लाभ मिला है। बैठक में शिक्षक नेताओं ने कहा मृतक आश्रितों को मिलने वाले लाभ अनुमन्य होंगें। साथ ही आठ जनवरी 1999 के पूर्व नियुक्त शिक्षकों के सेवा के पांच वर्ष पूरा होने की तिथि से ही वरिष्ठता, प्रोन्नति, नियमितीकरण होने से शिक्षकों समस्याओं का समाधान हो सकेगा। शिक्षक नेता हेमंत त्रिपाठी देवेश सिंह ने बताया कि प्रमुख सचिव ने निर्देश दिया है कि उक्त सम्बंध में कार्यवाही शीघ्रता से आगे बढ़ाई जाये। बैठक में प्रमुख रूप से जगदीश यादव, अनुराग मिश्र, हेमा श्रीवास्तव, खुन्नूलाल, आदित्य, सुधीर, अखिलेश, कृष्णदत्त त्यागी, नागेश पांडेय, प्रभा देवी, किरण देवी, जितेंद्र, श्रीकृष्ण शुक्ला, राजेंद्र सैनी सहित सैकड़ों शिक्षक मौजूद रहे।

16 सित॰ 2008

फतेहपुर के एक और लाल - असगर वजाहत

असगर वजाहत का जन्म 5 जुलाई 1946 को हुआ था. उन्होंने पी एच डी तक की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से की. उनके लेखन में तीन कहानी संग्रह, चार उपन्यास, : नाटक और कई अन्य रचनाएँ शामिल हैं.वजाहत टेलीविज़न फ़िल्म लेखन और निर्देशन से भी जुड़े रहे हैं.


असगर वजाहत की कृतियां -

कहानी संग्रह और पांच उपन्यास- रात में जागने वाले, पहर-दोपहर, सात आसमान, कैसी आगी लगाई और मनमाटी।

असगर वजाहत के छह नाटकों का देश भर में मंचन और प्रदर्शन हुआ है। जिन लाहौर नईं वेख्या... ने देश की सरहद के बाहर भी खूब तारीफें बटोरी हैं।





14 सित॰ 2008

सभी फतेहपुर के लेखकीय रुचि के व्यक्तियों से निवेदन

कृपया सभी फतेहपुर के सभी व्यक्तियों से निवेदन है की वे चाहे जिस भी रूप में कार्य कर रहे हो , यदि वे इस ब्लॉगसे जुड़ सके तो तो यह इस ब्लॉग के लिए गौरव की बात होगीआप अपना -मेल एड्रेस , फ़ोन ,पता और हो सके तोब्लॉगर प्रोफाइल या ओरकुट प्रोफाइल का लिंक भी भेज देइसके लिए मेरी ओरकुट प्रोफाइल केस्क्रैप-बुक काइस्तेमाल कर सकते हैंमेरा ओरकुट प्रोफाइल है -
http://www.orkut.co.in/Main#Profile.aspx?uid=14376799049954244678

13 सित॰ 2008

ख़राब परिस्थितियों के बावजूद अमित बना वैज्ञानिक

ठनी ही रहती है मेरी सिरफिरी पागल हवाओं से,
मगर मैं रेत के टीले पे अपना घर बनाता हूं।


इरादे फौलादी हों, लक्ष्य अडिग हो और इच्छाशक्ति मजबूत हो तो कोई भी मुश्किल मंजिल को पाने से नहीं रोक सकती। इसे पुन: प्रमाणित किया है पिता रामकिशोर व माता सरस्वती देवी के होनहार पुत्र अमित ने। सोना आग में तपकर कुन्दन बनता है और जीवन की कठिनाइयों से दो-दो हाथ करके ही आदमी में निखार आता है। यह महज कह दी गयी बातें नहीं हैं विषम परिस्थितियों ने ही महान मानवों को जना है।

जरा गौर करें पिता आजीवन कारावास की सजा के अन्तर्गत जेल में घर में मात्र डेढ़ बीघा खेती दोनों जून रोटी के लाले अकेली मां के कमजोर कंधों पर बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी। हजारों मुश्किलें ऐसी कि हार मान लेना ही नियति बन जाये। पर जैसा नाम ठीक वैसा ही काम कर दिखाया अमित ने। अमित इस शब्द का तात्पर्य ही है अधिक जो कम न हो। यथा नाम तथा गुण को चरितार्थ करने वाले अमित की उपलब्धि ने इनके गांव चांदपुर के साथ सम्पूर्ण जनपद के माथे पर चार चांद लगा दिये हैं। अमित भाभा एटामिक रिसर्च सेन्टर कलपक्कम में ए ग्रेड वैज्ञानिक बन गये हैं। यह एक ऐसी उपलब्धि है जिसने सुना वही चमत्कृत रह गया। कारण कि तमाम तरह की सुख सुविधायें और अच्छी व्यवस्थायें देने के बावजूद बाहर पढ़ने गये नौनिहाल अक्सर लौट के बुद्धू घर को आये वाली कहावत चरितार्थ करते हैं।


बचपन में ही पिता रामकिशोर पटेल हत्या के मुकदमे में जेल चले गये थे। उन कठिन दिनों में भी अमित ने साहस नहीं खोया। वह खुद तो पढ़ते ही रहे साथ ही अपने छोटे-भाई बहनों को भी अध्ययन के लिये निरंतर प्रेरित करते रहे। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि अमित ने अपनी पढ़ाई का खर्च खुद ही निकाला। पढ़ने के साथ पढ़ाना जिससे ज्ञान भी बढ़ा और खर्च भी चलता रहा। भौतिकी से प्रथम श्रेणी में परास्नातक अमित ने फरवरी 2008 में जब भाभा रिसर्च सेन्टर कलपक्कम में वैज्ञानिक पद हेतु परीक्षा दी थी उस वक्त उन्हें अपनी ऐसी सफलता की आशा नहीं थी। पर कहते हैं कि परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता सो यहां भी उन्होंने सफलता के उच्च आयाम स्थापित किये। उनका रिलज्ट आया तो वह ए ग्रेड के अन्तर्गत वैज्ञानिक बन चुके थे।

पूरी जानकारी के लिए इस लिंक को क्लिक करें

लक्ष्मण का रोल भी करते थे कन्हैया लाल नंदन जी!

पिछली पोस्ट में बताया जा चुका है की कन्हैया लाल जी फतेहपुर की माटी के लाल हैं , इसी कड़ी में इस लिंक के कुछ हिस्से प्रस्तुत हैंपूरा पढने के लिए यंहा क्लिक करेंपेश है उन्ही के शब्दों में उनके संस्मरण..........

"असल में संगीत मेरे जीवन का एक ऐसा अंग रहा है जिसमें मैंने पाया कि मन कितना ही दुखी क्यों न हो, परेशानियाँ कितनी ही घनी क्यों न हों, अगर मैं संगीत की दुनिया में चला जाता हूँ, तो मैं सभी कष्ट-तकलीफें भूल जाता हूँ। ईश्वर की कृपा थी कि मुझे स्वर भी अच्छा मिला था और मेरे गाँव का वातावरण भी कुछ सांस्कृतिक था, सो मैं संगीत की महफिलों में ज्यादा ही रुचि लेने लगा। महफिलें तो मैं यों ही कुछ अतिरिक्त मोह में कह रहा हूँ असल में ये सिर्फ बैठके थीं।"

"शाम को खाने-पीने के बाद किसी की बैठक में दस-पाँच लोगों की एक टुकड़ी जमा हो जाती। उन्हीं में से कोई ढोलक बजाने वाला, कोई गाने वाला, कोई दंडताल खटकाने वाला और कोई मंजीरा खनकाने वाला होता। इसी को हम संगीत की 'महफिल' कहते। चूँकि सारे गाँव का वातावरण ही ऐसा था, इसलिए अधिकांश लोग श्रोता के रूप में उपस्थित हो जाते। ये महफिलें लगभग आधी-आधी रात तक चलतीं। धीरे-धीरे गाँव में यह मशहूर हो गया कि यदुनंदन तिवारी का लड़का गाता बहुत अच्छा है और तबला भी बढ़िया बजाता है।"

"मेरी यह शोहरत पढ़ाई में अच्छा होने के साथ-साथ मुझे एक अतिरिक्त प्रशंसा देती चली गई और एक दिन बद्रीविशाल बाबा (पंडित बद्रीविशाल द्विवेदी) मेरे बाबा के पास यह इजाजत लेने पहुँच गए कि वे मुझे धनुष-यज्ञ लीला में लक्ष्मण का पार्ट देना चाहते हैं। मेरे बाबा को इस पर कोई ऐतराज़ नहीं दिखा और उन्होंने सहर्ष इजाजत दे दी। "

"मैं लक्ष्मण के पार्ट का नाम सुनकर अंदर ही अंदर इसलिए खुश होने लगा कि चलो अब सीता का पार्ट नहीं करना पड़ेगा। जाने क्यों लड़का होकर लड़की की भूमिका अदा करना मुझे रुचिकर नहीं लगता था। सुनने में ही मुझे अजीब-सा लगता था। और अगर मेरे गाँव की रामलीला कुछ सालों के लिए बंद न हो गई होती तो शायद मुझे भी धनुष-यज्ञ लीला में सखी सीता की भूमिका करनी पड़ती, तब कहीं जाकर लक्ष्मण, राम, और परशुराम की भूमिकाओं का मौका मिलता। वह तो हुआ यह कि गाँव के आपसी झगड़ों और खींचतान के कारण धनुष-यज्ञ का आयोजन बंद कर दिया गया और तब तक मैं सीता का पार्ट अदा करने की उम्र से आगे निकल गया। सो, नारी-पात्र बनने से मुक्ति मिली और मैं सीधे लक्ष्मणजी बनकर धनुष-यज्ञ में प्रविष्ट हो गया। "

"बद्रीविशाल बाबा भी हमारे गाँव की अजीब शख्सियत थे। सुना था कि वे बहुत पहले बर्मा में रहे थे, जो अब म्यांमार हो गया है। वहाँ से लौटे तो गाँव में सांस्कृतिकता फैलाने की दृष्टि से धनुष-यज्ञ लीला का प्रचलन शुरू किया। हो सकता है कि यह लीला बद्रीविशाल बाबा के पहले से भी वहाँ होती रही हो, लेकिन मैंने उन्हीं के कमरे से इसका सूत्रपात होते पाया। उनके यहाँ एक कमरा धनुष-यज्ञ के साज-सामान से पटा रहता था। कुछ कपड़े, वेशभूषाएँ, कागज़ की तिदवारियाँ, खम्भे बने हुए रखे रहते थे। हर साल धनुष-यज्ञ होने के समय उन्हें झाड़ा-पोंछा और चमकाया जाता था और लकड़ी के खम्भे गाड़-गाड़कर उन पर तिदवारियाँ जड़ते हुए पूरे मैदान को एक उत्सव-स्थल का रूप दे दिया जाता था। रामजन्म के समय यह उत्सव-स्थल अयोध्या बन जाता था और सीता स्वयंवर अथवा धनुष-यज्ञ के समय वही स्थल जनकपुरी बन जाता था। "

"बद्रीविशाल बाबा के पास एक पोथी थी जिसमें धनुष-यज्ञ की पूरी लीला में भाग लेने वाले सभी चरित्रों के पूरे संवाद लिखे होते थे। पूरी लीला का सबसे महत्वपूर्ण प्रसंग होता था - धनुष टूटने वाले दिन लक्ष्मण-परशुराम संवाद। "

"परशुराम की भूमिका किसी अच्छे हृष्ट-पुष्ट दिखने वाले ब्राह्मण को दी जाती थी। बाबा के यहाँ हफ्तों पहले से धनुष-यज्ञ की रिहर्सल हुआ करती थी जिसमें भावाभिव्यक्ति से लेकर संवाद तक की समूची भूमिका की रोज समीक्षा भी होती थी। "

"बद्रीविशाल बाबा यह काम एक हेडमास्टर की तरह करते थे और अनुशासन के साथ नियमितता से उसका पालन कराते थे। मेरे साथ राम की भूमिका में होते थे गिरिजाशंकर त्रिपाठी। बंदीजन की भूमिका में उनके बड़े भाई कालीशंकर त्रिपाठी और परशुराम की भूमिका में उनके सबसे बड़े भाई बाबूलाल त्रिपाठी।"

"इलाके में सबसे अच्छा परशुराम वह माना जाता था जो शिव-धनुष टूटने का आक्रोश व्यक्त करते समय उछल-उछलकर तख्त तोड़ देता था।"


आगे पढने के लिए यंहा चटकाएं

गणेशशंकर विद्यार्थी संचयन का हुआ प्रकाशन

गणेशशंकर विद्यार्थी हमारे फतेहपुर जनपद के हथगाम क्षेत्र के प्रसिद्द व्यक्तित्व थेउनसे सम्बंधित गणेश शंकर विद्यार्थी संचयन का प्रकाशन साहित्य अकादमी द्वारा किया गया था
आइये उस पुस्तक से कुछ महत्वपूर्ण अंशों को देखते हैंपूरी जानकारी के लिए यंहा क्लिक करें

प्रस्तुत हैं इसी पुस्तक के कुछ अंश


गणेशशंकर विद्यार्थी (1890-1931) बींसवीं सदी के सबसे गतिशील राष्ट्रीय व्यक्तिवों में थे। भारत के समूचे राष्ट्रीय एंव सांस्कृतिक आंदोलन के इतिहास में उन जैसा दूसरा नहीं हुआ। हिन्दी प्रदेश के तो वे अकेले ऐसे व्यक्ति थे, जिनके मानस में आज़ादी के बाद के देश समाज के समृद्ध सामाजिक-सांस्कृतिक पुनर्निर्माण का एक स्पष्ट खाका था और जो हिन्दी जाति के प्रबल पक्षधर थे। हिन्दी की राष्ट्रीय पत्रकारिता के भगीरथ तो वह थे ही, अपने समय की हिन्दी की साहित्य धारा को समृद्ध करने वाले अकेले राष्ट्रीय व्यक्तित्व भी थे।

गणेश जी का जन्म 26 अक्तूबर 1890 को इलाहाबाद के अतरसुइसा मुहल्ले में नाना के घर हुआ था। उनके पिता बाबू जयनारायण श्रीवासस्तव फतेहपुर जिले के हथगाँव के रहने वाले थे और ग्वालियर रियासत के शिक्षा विभाग के अध्यापकी करते थे। उनकी माँ का नाम श्रीमती गोमती देवी था। जब वह माँ के गर्भ में थे, तो उनकी नानी श्रीमती गंगा देवी ने एक सपना देखा कि वे अपनी पुत्री को गणेशजी की एक मूर्ति उपहारस्वरूप दे रही हैं। उसी स्वप्न के आधार पर तय पाया गया कि होने वाली संतान का नाम, अगर पुत्र हुआ तो गणेश और कन्या हुई तो गणेशी रखा जायेगा। गणेशशंकर विद्यार्थी के नामकरण की पृष्ठभूमि यही है। विद्यार्थी शब्द उनके नाम के साथ इलाहाबाद में एफ.ए. की पढ़ाई करने के दौरान पंडित सुन्दरलाल की प्रेरणा से जुड़ा और आजीवन जुड़ा रहा। उनका मानना था कि मनुष्य जीवन-भर कुछ-न-कुछ लगातार सीखता रहता है, अतः वह आजीवन विद्यार्थी ही होता है।



गणेशशंकर विद्यार्थी की वैचारिक अग्निदीक्षा लोकमान्य तिलक के विचार-लोक में हुई थी। शब्द एंव भाषा के संस्कार उन्होंने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी से प्राप्त किये थे। 1913 में उनके उद्योग से निकला साप्ताहिक ‘प्रताप’ अख़बार एक ओर जहाँ हिन्दी का पहला सप्राण राष्ट्रीय पत्र सिद्ध हुआ, वहीं साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में उदित हो रही नई प्रतिभाओं का प्रेरक मंच भी वह बना।

‘प्रताप’ के उद्योग से ही तिलक और गाँधी के साथ- साथ लेनिन, बिस्मिल-अशफ़ाक़ और भगतसिंह के औचित्य और तर्क हिन्दी भाषी समाज को सुलभ हो पाये। प्रेमचन्द्र, गया प्रसाद शुक्ल ‘सनेही’, ‘त्रिशूल’ माखनलाल चतुर्वेदी एक भारतीय आत्मा और बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ के रचनात्मक व्यक्तियों को सँवारने में विद्यार्थी जी ने प्रमुख कारक की भूमिका अदा की। पारसी शैली के नाटककार राधेश्याम कथावाचक और लोकनाट्य रूप नौटंकी के प्रवर्तक श्रीकृष्ण पहलवान को प्रेरित-प्रोत्साहित करने का महत्त्व भी वे समझते थे। ‘प्रताप’ पर ब्रिटिश हुकूमत का प्रहार इसलिए हुआ कि श्री विद्यार्थी देसी जमींदारों की निरंकुशता के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलन्द कर रहे थे। चंपारन (बिहार) के निलहे अंग्रेज जमींदारों द्वारा स्थानीय किसानों के शोषण और रायबरेली के निरीह किसानों पर वहाँ के एक ताल्लुकेदार द्वारा गोली चलवाने की लोमहर्षक ख़बरें ‘प्रताप’ में छपी थीं, जिसके लिए उन्हें छः महीने के लिए जेल जाना पड़ा। दूसरे दशक के अन्तिम वर्षों में देश में मज़दूर आन्दोलन का सूत्रपात भी उन्हींने ही किया था।

धार्मिक मदांधता से भी गणेशजी 1915 में ही टक्कर लेने लगे थे। ठीक कबीर के लहज़े में दोनों धर्मों की कट्टरता की तीखी आचोलना करते हुए उन्होंने कहा: ‘‘कुछ लोग ‘हिन्दू राष्ट्र’-‘हिन्दू राष्ट्र’ नहीं हो सकता, इसी शैली में उन्होंने मुसलमानों को भी लक्ष्य करके कहा : वे लोग भी इसी प्रकार की भूल कर रहे हैं जो टर्की या काबुल मक्का या जेद्दा का स्वप्न देखते हैं, क्योंकि वे उनकी जन्मभूमि नहीं...उनकी कब्रें इसी देश में बनेंगी और उनके मर्सिये इसी देश में गाये जायेंगे।’’ (राष्ट्रीयता : 21 जून 1915) आगे चलकर धर्म के प्रश्न राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं के नजरिये की आलोचना करने में भी वह नहीं झिझके। कहा : ‘‘वह दिन निसंदेह अत्यंत बुरा था, जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में ख़िलाफ़त, मुल्ला-मौलवियों और धर्माचायों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया...देश की स्वाधीनता के संग्राम ही ने मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य को देश के सामने दूसरे रूप में पेश किया, उन्हें अधिक शक्तिशाली बना दिया और...इस समय हमारे हाथों ही से बढ़ायी उनकी और इनके-से लोगों की शक्तियाँ हमारी जड़ उखाड़ने और देश में मज़हबी पागलपन प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर रही हैं।’’


मेरा आग्रह है की आप जरूर से जरूर इस लिंक को पूरा पढ़ेअपने विचार से भी हमें अवगत कराएँ

फतेहपुर के साहित्यकार कृष्ण कुमार त्रिवेदी के हिन्दी पर विचार

हिन्दी का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह रहा है कि उसे अपनों के ही प्यार से वंचित रहना पड़ा है। राष्ट्रभाषा का गौरवशाली पद पाकर भी वह उस पर प्रतिष्ठित नहीं हो पा रही है। उसकी एक से एक कमियाँ निकालने वाले उसके अपने ही हैं। जनगणना में उसके बोलने वालों में उसकी बोलियाँ/सहभाषायें में (राजस्थानी, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी, मैथिली, आदि) बोलने वालों को नहीं जोड़ा जाता । धर्म और सम्प्रदाय के कारण वे लोग भी उसे अपनी मातृभाषा नहीं लिखाते जो उसके अतिरिक्त और कोई भाषा जानते ही नहीं। प्रपत्रों में मातृभाषा का स्तम्भ तो होता है। भाषा-ज्ञान का नहीं, कि उससे हिन्दी बोलने और जानने वालों की संख्या अत्याधिक बढ़ जाने की आशंका रहती है। अँगरेज़ी माध्यम के विद्यालय सबसे अधिक हिन्दी भाषी क्षेत्रों में ही खुल रहे हैं, उसके अपनों के उसकी ओर से मुँह मोड़ लेने के कारण। प्रकाशन की आज की स्थिति में केवल लेखन के भरोसे जी सकना हिन्दी के लिए संभव नहीं है।

आगे कहते हैं______
फिजी, मारीशस सुरीनाम, गुयाना आदि में प्रवासी भारतीयों ने अपनी भाषा को न केवल जीवित रखा है वरन उसे निष्ठापूर्वक पुष्पित और पल्लवित भी किया है। वहाँ के हिन्दी-साहित्य के बारे में कभी-कभार कहीं कोई लेख आदि पढ़ने को मिल जाए तो मिल जाए। कभी वर्षों में, कृतार्थ करने के भाव से प्रकाशित, कोई रचना भी शायद देखने को मिल जाए, बिना लेखक के किसी परिचय या चित्र आदि के। विश्व हिन्दी सम्मेलन के प्रयासों से प्रवासी हिन्दी-लेखकों के बारे में यहाँ कुछ जानकारी हो पायी है और वहाँ की एकाध साहित्यिक कृतियाँ भी पढ़ने को मिल गयी है। इस सबसे अनुमान लगा है कि वहाँ भी साहित्य की लता पूरी गति से सदैव गतिशील रही है ।

त्रिवेदी जी का कहना है________
भाषा के विकास की यह प्रथम शर्त है कि उसके साहित्य को जानने-समझने का प्रयास से, उसके साहित्यकारों को उचित सम्मान मिले तथा उसके साहित्य का प्रचार-प्रसार हो। और सबसे रोचक तथ्य यह है कि पाठ्यक्रम में सम्मिलित लेखकों को ही सामान्य जन लेखक मानते हैं। यहाँ एक बात और ध्यान में रखनी होगी कि प्रवासी-साहित्य का अर्थ वहाँ की मिट्टी में रचा-बसा साहित्य ही है। दूतावासों के कर्मचारियों और अनुबंध पर सेवा- कार्य कर रहे भारतीयों को उसका अपहरण नहीं करने दिया जा सकता । अपने दाय का संरक्षण-संवर्द्धन करके ही हम वास्तविक रूप से समृद्ध हो सकेंगे।


श्री कृष्ण कुमार त्रिवेदी जी पूरा लेख पढने के लिए यंहा चटकाएं
बताते चले की फतेहपुर की साहित्यिक शख्सियत होने के आलावा वह महर्षि विद्या मन्दिर फतेहपुर के प्रधानाचार्य भी रह चुके हैं , और सम्प्रति पुलिस माडर्न स्कूल फतेहपुर के प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत हैं

फतेहपुर के साहित्यिक पहचान की नई उडान

ऐतिहासिक मुगलकालीन स्थल 'खजुहा' जिला-फतेहपुर उत्तर प्रदेश पर विशेष कार्य, स्वतंत्र आलेखन एवं वृत्तचित्र 'अतीत की धरोहर' के निर्माण में विशेष सहयोग करने वाले फतेहपुर के साहित्य जगत की एक नई कड़ी के रूप में प्रस्तुत है श्री चक्रधर शुक्ला जी का परिचय
चक्रधर शुक्ल

जन्मः 18 जनवरी 1957 खजुहा, जिला फतेहपुर (उ०प्र०) 212657
रचनाएँ-
हास्य व्यंग्य-

आधुनिकता छै छोटे व्यंग्
तीन छोटी कविताएँ (रामकथा से)
राजनीति- कुछ छोटी कविताएँ

क्षणिकाओं में-
रंगः चार क्षणिकाएँ
नेता एक : रंग अनेक

कविताओं मेँ-
आग का लगना
कविता
पिच का कमाल
समय


ज्यादा जानकारी के लिए यंहा चटकाएं

10 सित॰ 2008

फतेहपुर के एक और लाल रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'



फतेहपुर के एक और साहित्यिक विरासत के मूर्धन्य कवि से परिचय करें ......
ज्यादा जानने के लिए यंहा क्लिक करें
प्रमुख
रचनाएँ

  • जब नींद नहीं आती होगी
  • दो सजा मुझको असंयत कामना के ज्वार पर


रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'


जन्म: 01 मई 1915

उपनामअंचल
जन्म स्थानकिशनपुर, फ़तेहपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
कुछ प्रमुख
कृतियाँ

विविध
जीवनीरामेश्वर शुक्ल 'अंचल'/ परिचय
Rameshwar Shukla Anchal, Rameshvar Shukl Anchal



फतेहपुर के थे लाल सोहन लाल द्विवेदी !

चल पड़े जिधर दो डग, मग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर
पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि, पड़ गये कोटि दृग उसी ओर;
जिसके सिर पर निज धरा हाथ, उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ
जिस पर निज मस्तक झुका दिया, झुक गये उसी पर कोटि माथ।


अगर आप को याद हो यह पंक्तिया; तो बताते चले की यह पंक्तिया हमारे रस्त्रकवि प.सोहन लाल द्विवेदी द्वारा रचित हैं । सोहनलाल द्विवेदी राष्ट्रीय नवजागरण के उत्प्रेरक ऐसे कवियों के नाम हैं, जिन्होंने अपने संकल्प और चिन्तन, त्याग और बलिदान के सहारे राष्ट्रीयता की अलख जगाकर, अपने पूरे युग को आन्दोलित किया था, गाँधी जी के पीछे देश की तरूणाई को खडा कर दिया था। सोहनलालजी उस श्रृंखला की महत्वपूर्ण कड़ी थे। डा. हरिवंशराय बच्चन' ने एक बार लिखा था जहाँ तक मेरी स्मृति है, जिस कवि को राष्ट्रकवि के नाम से सर्वप्रथम अभिहित किया गया, वे सोहनलाल द्विवेदी थे। गाँधीजी पर केन्द्रित उनका गीत युगावतार या उनकी चर्चित कृति भैरवी ' की पंक्ति वन्दना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो, हो जहाँ बलि शीश अगणित एक सिर मेरा मिला लो ' में कैद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सबसे अधिक प्रेरणा गीत था।
फतेहपुर की मिटटी को हम सलाम करते हैं। ज्यादा जानने के लिए यंहा चटकाएं।

फतेहपुर जिले में 2,000 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट लगाने का रास्ता साफ

नेवेली लिग्नाइट के फतेहपुर जिले में 2,000 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट लगाने का रास्ता साफ हो गया है। एनएलसी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टरों द्वारा इस परियोजना की अनुमति मिल जाने के बाद आने वाले हफ्तों में इसे स्टेट कैबिनेट के समक्ष पेश किया जाएगा। ईटी ने 19 फरवरी को ही इस बात की जानकारी दी थी कि उत्तर प्रदेश में एक पावर प्लांट स्थापित करने के लिए एनएलसी ने राज्य के कैबिनेट सचिव शशांक शेखर को औपचारिक प्रस्ताव भेजा है।

यूपीपीसीएन के मैनेजिंग डायरेक्टर अवनीश अवस्थी का कहना है, 'कोयला आधारित 2,000 मेगावाट का थर्मल पावर प्लांट यूपी पावर कॉरपोरेशन (यूपीपीसीएल) और एनएलसी का संयुक्त उपक्रम है।' फतेहपुर, फर्रुखाबाद और बाद में ऊर्जा विभाग ने दो बड़े भूखंडों की पहचान की थी ताकि नई पावर परियोजनाओं के लिए उपयुक्त जमीन मिल सके।
ज्यादा जानकारी के लिए यंहा चटकाएं

7 सित॰ 2008

फतेहपुर के रचनाकार कन्हैया लाल नंदन के बारे में

शयद आपको पता हो कि रचनाकार कन्हैया लाल नंदन अपने जनपद फतेहपुर के ही लाल हैं । अपनी रचनाओ से इन्होने साहित्य के साथ साथ अपने जनपद का भी नाम रोशन किया है । जाहिर है कि किसी न किसी तरह से वह हमारे लिए प्रेरणा के स्त्रोत हैं। आइये उनके बारे में जानने के लिए यंहा चटकते हैं । यंहा बताया गया है कि............प्रमुख रचनाये -
कन्हैयालाल नंदन

जन्म: 1933

उपनाम--
जन्म स्थानपरसदेपुर, फतेहपुर, उत्तर प्रदेश
कुछ प्रमुख
कृतियाँ

विविध
जीवनीकन्हैयालाल नंदन / परिचय
Kanahiyalal Nandan, Kanahaiya Lal

फतेहपुर - सरकारी वेबसाइट केनजर से

पिछली पोस्ट में आपने विकिपीडिया के नजरों से फतेहपुर को जानने की कोशिश की थी। आज फतेहपुर के बारे में सरकारी wesite के माध्यम से जानकारी के लिए यंहां चटकाए।
यंहा बताया गया है कि - District Fatehpur was setup on November 10th, 1826 A.d. as a separate district, taking fertile land lying in between river Ganga & river Yamuna. . Thus, this is among a few oldest districts in the state of Uttar Pradesh . Besides having a grand religious and historical background, this is motherland of Martyr Jodha Singh Ataiya, Martyr Dariyaw Singh and many other freedom fighters & renowned hindi poet Rashtrakavi Sohan Lal Dwivedi . In this site, we have tried our best to give you full introduction of this town & it's heros........

सार्वजानिक जगहों को चिन्हित करने की कोशिश करें

फतेहपुर में रहते हैं , और अभी तक अपने घर को सॅटॅलाइट की नजर से नहीं देखा तो देखने के लिए यंहा चटकाएं । कृपया कोशिश करें की पूरा फतेहपुर घेरने के बजाय वास्तविक रूप से अपने घर को ही दिखाएँ । विशेष रूप से सार्वजानिक जगहों को चिन्हित करने की कोशिश करें ।

फतेहपुर जिला - विकिपीडिया की नजर में

फतेहपुर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है ।

जिले का मुख्यालय फतेहपुर है ।

क्षेत्रफल - वर्ग कि.मी.

जनसंख्या - (2001 जनगणना)

साक्षरता -

एस. टी. डी (STD) कोड - 5180

जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में)

समुद्र तल से उचाई -

अक्षांश - उत्तर

देशांतर - पूर्व

औसत वर्षा - मि।मी.


आगे पढने के लिए यंहा चटकाएं