31 अक्तू॰ 2008

UNISON - 2008 हुआ संपन्न

आयोजन तिथियों में फेरबदल के बाद कल 30 अक्टूबर 2008 को दिल्ली दरबार में UNISON - 2008 के रूप में अगली कड़ी संपन्न हुई बहुत ज्यादा तो नहीं पर 10-12 लोगों से मुलाकात भी अच्छी रही वास्तव में नौजवानों से मिल कर बहुत अच्छा लगा , काफी अच्छी चर्चाएँ रही समझ में यह आया कि एक COMMON COMMUNICATION CHANNEL कि हम सब फतेह्पुरियों के बीच कमी है , जिसे समाप्त किया जाना चाहिए


कुल मिलकर मेरे हिसाब से यह निष्कर्ष रहे -
  1. लोगों को अपने HOME TOWN फतेहपुर से प्यार है , तो उनको चाहिए कि वह इसको अपनी प्रोफाइल में लिखने व बताने में न शर्मायें ।
  2. सबसे बड़े ग्रुप को महत्ता देते हुए , यह करने कि जरूरत है कि छोटे GROUPS उनमे समाहित हो जाएँ ।
  3. सबसे बड़ी जरूरत अपने फतेहपुर के जूनियर्स को नई नौकरियों के सन्दर्भ में हैं , अतः यह सूचना आपस में सबको मिलनी चाहिए ।
  4. इस कड़ी में सबको एक DATA BASE बनाने पर जोर दिया गया , जिसमे अलग अलग शहर में कम कर रहे लोगों का विवरण हो ।
  5. सभी को आपस में फतेहपुर के बाहर भी फतेहपुर मीट जैसे आयोजन अपने शहर में करने कि कोशिश करनी चाहिए ।
  6. फतेहपुर @ याहू ग्रुप और फतेहपुर ब्लॉग( http://fatehpurcity.blogspot.com ) को प्रमोट करने का निर्णय लिया गया , जिनके माध्यम से लोग अपना फतेहपुरिया कम्युनिकेशन चैनल बना सकें ।
  7. यह माना गया कि QUANTITY से बेहतर QUALITY है , अतः इसको धीरे धीरे ही सही पर बढ़ाना अवश्य ही चाहिए ।

29 अक्तू॰ 2008

पर्वों का समूह है दीपावली !

दीपावली का अर्थ है दीपों की लड़ी या पंक्ति । माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। श्री राम के स्वाग में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए । कार्तिक मास की घनघोर काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। अधिकतर यह पर्व अक्तूबर या नवंबर महीने में पड़ती है। दीपावली दीपों का त्योहार है| इसे दीवाली या दीपावली भी कहते हैं । दीवाली का पर्व रोशनी का प्रतीक है| भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है| दीवाली यही चरितार्थ करती है -

असतो माऽ सद्गमय , तमसो माऽ ज्योतिर्गमय।


दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों , दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन,सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता हैं। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा का सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं ।

पर्वों का समूह दीपावली
दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इस दिन बाज़ारों में चारों तरफ़ जनसमूह उमड़ पड़ता है। बरतनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है अतैव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अगले दिन नरक चतुरदशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं। अगले दिन दीपावली आती है। इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाज़ारों में खील-बताशे , मिठाइयाँ ,खांड़ के खिलौने , लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं । स्थान-स्थान पर आतिशबाजियों और पटाखों की दुकानें सजी होती हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं। दीपमालादीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियाँ जगमगा उठते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाज़ियों का आनंद लेते हैं। रंग-बिरंगी फुलझड़ियाँ , आतिशबाज़ियाँ व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं। देर रात तक कार्तिक की अँधेरी रात पूर्णिमा से भी से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती है। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बनाया था। इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं। अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है। दीपावली के दूसरे दि व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं। वे दुकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी। कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है। खरीफ़ की फसल पककर तैया हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं।

दीपावली पूजन
अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाईचारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दिवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है। लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ़ करते हैं, नये कपड़े पहनते हैं। सब मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बाँटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं। घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है, दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है। बड़े छोटे सभी इस त्योहार में भाग लेते हैं| अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाईचारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दिवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है| लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है| लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ़ करते हैं; नये कपड़े पहनते हैं। सब मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बाँटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं। घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है, दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है। बड़े छोटे सभी इस त्योहार में भाग लेते हैं।

(साभार - विकिपीडिया )

अब लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों को समाधिस्थ करने की अनूठी पहल

पुरोहितों के साथ बैठक करके स्वामी विज्ञानानन्द जी ने गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिये पूजन सामग्री घरों की मूर्तियों को गंगा में विसर्जित करने की सलाह दी। आचार्यो की राय पर तय किया गया कि यजमानों को इस पवित्र कार्य के लिये प्रेरित करके यह संकल्प दिलाया जायेगा कि मूर्तियों को मिट्टी में समाधिस्थ करेंगे।

चंदियाना स्थित आश्रम में बैठक की अध्यक्षता करते हुए स्वामी विज्ञानानन्द सरस्वती ने कहा कि दीपावली के पवित्र पर्व पर हर घर में लक्ष्मी-गणेश की नई मूर्ति पहुंचेगी। पुरानी मूर्तियों को गंगा जी में विसर्जित करने की परंपरा को इस बार समाप्त करना है। पुरोहित इस कार्य में बेहतर योगदान कर सकते हैं। उन्होंने यह कहा कि यजमानों को यह समझाया जाये कि मूर्तियां गंगा जी में प्रवाहित करने से प्रदूषण तो बढ़ता ही है साथ ही स्नान के समय यह मूर्तियों पैरों तले जाती हैं और उसमें पड़े लोहे के तार पैरों में घाव कर देते हैं। भूमि के अंदर मूर्ति यदि समाधिस्थ हो जायेगी तो वह पूरी तरह से सुरक्षित रहेगी। साहित्यकार डा.ओम प्रकाश अवस्थी ने कहा कि गंगा की पवित्रता के लिये किसी भी तरह की पार्थिव मूर्तियों शवों का प्रवाह गंगा जी में किया जाये। आचार्य ज्ञान प्रकाश मिश्र, जुगुल किशोर, जगत नारायण द्विवेदी, ओमदत्त मिश्र, अवधेश कुमार सहित अन्य आचार्यो ने एकमत होकर कहा कि गृहस्थ जनों की घरों की मूर्तियों जमीन में समाधिस्थ करायेंगे या फिर पीपल वृक्ष के नीचे मंदिरों के पास किसी सुरक्षित स्थान पर इकट्ठा कर ली जायेंगी। भक्तों को यह भी सुविधा दी गयी है कि भिटौरा के ओम घाट में पीपल के नीचे एक स्थान तय किया गया है जिसमें मूर्तियां सुरक्षित रखी जा सकती हैं बाद में इन्हें आस्था भक्ति पूर्वक समाधिस्थ करने की व्यवस्था की जायेगी

( समाचार स्त्रोत - जागरण )

27 अक्तू॰ 2008

UNISON - 2008 का आयोजन अब 30 अक्टूबर को

पिछली पोस्ट में अन्तिम रूप से घोषित UNISON - 2008 की आयोजन तिथि में पुनः एक बार परिवर्तन हुआ है , कुछ दिक्कतों के चलते अब UNISON - 2008 दिल्ली दरबार में तारीख ३० अक्टूबर 2008 को समय 12:00 दोपहर में आयोजित होगावास्तव में कोशिश यह होनी चाहिए की आयोजन की तिथियों में ज्यादा परिवर्तन फेरबदल हो , जिससे अधिक से अधिक लोग इस आयोज का हिस्सा बन सकेंमैं समझता हूँ कि कुछ ऐसी दिक्कतें अवश्य रही होंगी जिसके कारण यह परिवर्तन अपरिहार्य हुआ होगा चलते - चलते सभी को........
दीपावली पर्व की हार्दिक बधाई!

26 अक्तू॰ 2008

UNISON - 2008 के आयोजन की अन्तिम घोषणा

पिछली पोस्ट में UNISON - 2008 के आयोजन के विषय में जानकारी दी गई थीअब इसके आयोजन स्थल तिथि के बारे में अन्तिम घोषणा की जा चुकी हैअतः उससे अवगत करना चाहूँगा

UNISON - 2008 का आयोजन फतेहपुर में 29 अक्टूबर 2008 को जी.टी.रोड स्थित दिल्ली दरबार में ठीक 4 बजे सायं होगाज्यादा जानकारी के लिए यह लिंक देखेंज्यादा जानकारी के लिए आयोजक अभिनव गुप्ता के मोबाइल 9452540565 पर संपर्क किया जा सकता है । नीचे आयोजक के पत्र के कुछ अंश प्रस्तुत हैं .......


Hi Dear all
It's nice to see all your responded..
Now we are near about 50 people confirmed but if u are coming with some of our friends & family members it will be great...
We are meeting at 4o'clock sharp at Delhi Derbar on nearby bypass on 29th October...
We decided that the person who are in jobs or settelled they are contributing 200Rs and who are studying they have to contribute 100 only (guys this is not any entry fees it's just contribution for place,snacks,dinner,momentum and other charges of hotel)
I am leaving Mumbai today so you can catch me on this number or Bsnl...
Waiting for you all
Abhinav Gupta
Fatehpur-09452540565,
Mumbai-09920869498
Feel free to call me for any clarification...



आशा की जानी चाहिए की यह आयोजन फतेहपुर के तरक्की के प्रति मील का पत्थर साबित होंगेवास्तव में यह आयोजन फतेहपुर के नव-निर्माण का पथगामी साबित हो ऐसी मेरी शुभ कामना हैनमस्कार आप सभी को ......मिलते है UNISON - 2008 में









23 अक्तू॰ 2008

एमजी कालेज में बीकाम की मान्यता हुई बहाल

पिछले पांच वर्षो से बंद पड़ी बीकाम (B.Com.) की कक्षाएं चालू सत्र से शुरू कराने के लिये श्री छत्रपति जी शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर ने हरी झंडी दे दी है। दो सौ चालीस सीटों की स्थायी मान्यता मिलने के बाद बीकाम प्रथम वर्ष के लिये प्रवेश शुरू हो जायेंगे।

महात्मा गांधी महाविद्यालय फतेहपुर में प्रबंधकीय विवाद के चलते बीकाम की कक्षाएं स्वीकृत होने के दो वर्ष बाद ही बंद हो गयीं जोकि अब तक लगातार बंद ही चल रही थी । पांच वर्षो से बीकाम की कक्षाएं नहीं लग रही थीं। नई प्रबंध समिति ने प्रयास करके महाविद्यालय में बीकाम (B.Com.) संकाय की स्थायी मान्यता हासिल कर ली है। मालूम चला है कि छत्रपति शाहू जी महराज विश्वविद्यायल कानपुर व शासन से दो सौ चालीस सीटों की मान्यता मिल गयी है। प्रवेश प्रक्रिया तुरंत शुरू हो जायेगी। बीकाम में प्रवेश लेने वाले छात्र-छात्राएं महाविद्यालय से संपर्क कर आवेदन ले सकते हैं।

फतेहपुर की द्रष्टि से यह एक शुभ समाचार कहा जा सकता है वहीं हमें यह भी सोचने को मजबूर करता है की हम अब भी मूलभूत सुविधाओं में कितना पिछडे हुए हैं ?आशा की जानी चाहिए कि अब शायद इस दिशा में सुधार हो


(साभार समाचार स्त्रोत - जागरण याहू )

21 अक्तू॰ 2008

फतेहपुर में फ़िर होगा UNISON - 2008

फतेहपुर जनपद से जुड़े सभी लोगों का एक आयोजन पूर्व में UNISON - 2006 के रूप में पूर्व में किया गया था । जिसे विपुल नारायण सिंह व उनके अन्य सहयोगियों द्वारा किया गया था । सफलता और असफलता से परे यह एक नई शुरुवात थी और इसका श्रेय इसके आयोजकों को मिलना ही चाहिए था । बहरहाल उसी कड़ी को आगे बढाते हुए इस बार इसका आयोजन का बीडा अभिनव गुप्ता व उनके सहयोगियों द्वारा पुनः किया जा रहा है।
इस बार इसका आयोजन संभावित रूप से शायद 29 अक्टूबर 2008 को होगा , जगह व आयोजन तिथि जल्दी ही अन्तिम रूप से घोषित की जाएँगी ।
इससे जुड़ी संभवित जानकारी का केन्द्र याहू पर बना फतेहपुर ग्रुप है । आप सभी फतेहपुर वासियों में जो भी शहर में हैं या बाहर रह रहे हैं से निवेदन है की इस आयोजन में सहभागी बने और इस कड़ी को जोडें और मजबूत बनायें।
साथ ही साथ हम सब को यह सोचना होगा कि यह प्लेटफोर्म फतेहपुर के तरक्की के सपने को किस रूप में साकार करने में मददगार हो सकता है । आगे भी इस आयोजन से जुड़ी बातें इस चिट्ठे के मध्यम से आप सब से शेयर की जाएँगी । चिट्ठे से जुड़े रहने के लिए आप गूगल, याहू, किसी भी तरह से फीड सब्स्क्राइब कर सकते हैं या फ़िर इ-मेल को भर कर फीड-बर्नर के द्वारा अपने मेल बॉक्स पर प्राप्त कर सकते हैं।
पूर्व में आयोजित UNISON - 2006 के विषय में जानकारी इस लिंक पर जा कर प्राप्त हो सकती है।

आशा की जानी चाहिए कि इस तरह के आयोजन फतेहपुर की प्रतिष्ठा में वृद्धि ही करेंगे और एक नए रूप में फतेहपुर की मेधा को आगे बढ़ने का प्लेटफोर्म बन सकेंगे । धीरे - धीरे ही सही पर इस ओर कदम बढ़ाना एक शुभ संकेत माना जा सकता है

16 अक्तू॰ 2008

पुस्तकालय हुए बदहाल .....

पुस्तकों को ज्ञान का सागर कहा गया है। बौद्धिकता का केंद्र कहे जाने वाले पुस्तकालयों की कम होती जा रही उपयोगिता समाज के लिए चिंता का विषय है। जिले के इकलौते राजकीय पुस्तकालय की स्थिति यह है कि मात्र सत्तर सदस्य बने हैं। बौने संसाधनों से पाठक संतुष्ठ नहीं है। कहानी, नाटक, उपन्यास की पुरानी पुस्तकें तो अट्ठारह हजार से अधिक डंप है। लेकिन बदले परिवेश का साहित्य मिलने से युवा पीढ़ी पुस्तकालयों से नहीं जुड़ पा रही है। खासकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र इस बात से निराश हैं कि कैरियर स्पोर्टस से संबधित पत्रिकाए नहीं मिल पाती हैं।

पुस्तकालय ऐसे केंद्र हैं जहां साहित्य का सही आइना दिखता है। कहानी, नाटक, उपन्यास सहित साहित्य की अन्य विधाओं की पुस्तकों का भारी भंडार हर पंहुचने वाले को आकर्षित करता था। बौद्धिकता के साथ मनोरंजन के कुछ पल गुजारने के लिए पुस्ताकलय का सदस्य बनना एक शौक ही नहीं बल्कि व्यवस्था से जुड़ा हुआ था। सुबह शाम पुस्तकालय जाकर मन पसंद किताबों का अध्य्यन करना और आपस में देश की राजनीतिक सहित समाजिक पहलुओं पर वार्ता करके एक दूसरे से ज्ञान बांटने की जो विधा पुस्तकालयों से मिलती है वह दूसरी जगह नहीं है। इसी उपयोगिता के चलते तो शहर महानगरों में जगह-जगह पुस्तकालय खुले हुए थे। इनका उद्देश्य व्यवसाय नहीं बल्कि ज्ञान का सद्पयोग था।

डेढ़ लाख की आबादी वाले इस शहर में कहने को तो दो पुस्तकालय हैं लेकिन संसाधनों की कमी के चलते दोनों पुस्तकालय बौद्धिक की चाहत पूरी नहीं कर पा रहे हैं। नगर पालिका की कमला नेहरू लाइब्रेरी की स्थित यह है कि एक छोटे से कमरे में स्थांतरित कर दी गयी है। जहां तो पाठकों के बैठने के लिए पर्याप्त जगह है और ही मनपसंद पुस्तकों की उपलब्धता। पहले कभी इस लाइब्रेरी में शहर ही नहीं ग्रामीण क्षेत्र के सैकड़ों लोग जुडे़ थे। आज स्थित यह है कि स्थाई सदस्यता के लिए पुस्तकालय बाट जोह रहा है। बताते हैं कि बजट के अभाव में पुस्तकालय में नई किताबें नहीं पा रही हैं। पाठकों के नाम पर आस पास के दो चार लोग पंहुचकर खानापूरी कर रहे हैं।

जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के समीप संचालित राजकीय पुस्तकालय कर्मचारियों की कमी संसाधनों के अभाव का सामना कर रहा है। पुस्तकालय को साल में लगभग तीन लाख का बजट मिलता है। उसमें महंगी किताबें नहीं पाती। अखबार कुछ मासिक पत्रिकाएं मंगाकर काम चलाया जा रहा है। पुस्तकालय से जुडे़ ज्ञानेंद्र ने कहा कि रोजगार समाचार समय से नहीं आता। प्रतियोगी परीक्षाओं की पत्रिकाओं की कमी रहती है। अजय सिंह कहते हैं कि कैरियर स्पोर्टस से संबधित साहित्य मिल पाने से युवा वर्ग को पुस्तकालय का अधिक लाभ नहीं मिल पा रहा है। बाकरगंज के अनिल कुमार कहते हैं कि पुस्तकालय नियमित खुलता है। पठन पाठन की व्यवस्था भी सही है लेकिन जरूरत की कुछ किताबों का अभाव पाठकों को खटकता है। साहित्य की बदलती विधा में किताबों पत्रिकाओं की काफी कमी है। पहले के कहानी, नाटक, उपन्यास की हजारों ऐसी किताबें हैं जिन्हें वर्षो से पलटा ही नहीं गया। राजकीय पुस्तकालय के प्रभारी राजकुमार का कहना है कि किताबों की खरीद फरोक्त शासन स्तर पर की जाती है। यहां तो साल में मिलने वाले तीन लाख के बजट पर ही अखबार पुस्तकाओं की व्यवस्था करनी पड़ती है। उन्होंने बताया कि सूचीकार चौकीदार के पद कई वर्षो से रिक्त हैं। शासन को कई बार अवगत भी कराया गया लेकिन नियुक्ति नहीं हो पा रही है। स्टाफ की कमी से पुस्तकालय के संचालन में काफी दिक्कतें होती हैं।

खजुहा की रामलीला


फतेहपुर जिले के खजुहा कस्बे में रामनगर शैली में रामलीला तो होती ही है साथ ही रावण को उतना ही सम्मान दिया जाता है जितना कि दक्षिण भारत में। यहाँ पुतले को जलाने के स्थान पर उसकी आरती वंदना की जाती है। इस रामलीला की शुरुआत लगभग ४०० वर्ष पूर्व हुई थी जिसका उल्लेख "वंशावली" पुस्तक में मिलता है। लीला का प्रारंभ विजयादशमी से होता है। रावण के लगभग ५०-६० फ़िट लम्बे व २०-२५ फ़िट चौड़े आकृति की आरती हजार बत्तियों से की जाती है। प्रसाद एवं भोग सात्त्विक होता है। दिन में रावण-मन्दोदरी, मेघनाद, कुम्भकर्ण एवं विभीषण आदि ७ राक्षसों और बानरों तथा हाथी घोड़े आदि के विशालकाय पुतलों को नगर में घुमाया जाता है। रात्रि में खुले आसमान के नीचे रामलीला को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। दर्शनार्थियों की संख्या लाखों में होती है। इस प्रकार उत्तर भारत में रावण को सम्मान प्रदान करने वाली एक मात्र खजुहा की रामलीला ही है।

10 अक्तू॰ 2008

गंगा तीरे वसुंधरा की गोद में समायीं सैकड़ों देवी मूर्तियां...

जागरण - याहू से साभार-

वह दृश्य गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक लोगों के लिए प्रेरणास्पद रहा तो दकियानूसी को दरकिनार कर भागीरथी को निर्मल बनाने के संकल्प का अनूठा साक्षी भी। जागरण की पहल पर उत्तरवाहिनी गंगा के भिटौरा व नौबस्ता घाट पर पहली बार सैकड़ों देवी प्रतिमाओं को जल के बजाय भूमि विसर्जन हुआ। जिले के कोने-कोने से आयी प्रतिमाओं के साथ कई क्विंटल निष्प्रयोज्य पूजन सामग्री, फूल आदि को भी विशाल गड्ढों में डाल दिया गया।

जिले में गंगा प्रतिमाओं के विसर्जन में इस बार सब-कुछ बदला हुआ नजारा था। जल प्रवाह के घाट में सन्नाटा पसरा हुआ था। न तो नाव में मूर्तियां ले जाने की मारामारी और न ही मोक्षदायिनी की कल-कल बहती धारा में निष्प्रयोज्य पूजन सामग्री व प्रतिमाओं का बोझ डालने की होड़। दुर्गा मइया भी रहीं पुकार, मत रोको गंगा की धार। जैसे जयकारों के बीच देवी भक्त ढोल-ताशों के बीच नाचते-गाते भूमि विसर्जन स्थल की ओर बढ़ते जा रहे थे। देवी मां के साथ ही गंगा मइया के जयकारे लगे और प्रतिमाएं सुरसरि तीर पर वसुन्धरा की गोद में सहेज दी गयीं। इस अनुपम नजारे को देखने के लिये शहर के भी हजारों लोग पहुंचे। लंबे समय से चली आ रही परंपरा को तोड़ते हुए दुर्गा भक्तों ने गंगा मइया के अस्तित्व के लिये भूमि विसर्जन की अनूठी परंपरा की नींव डाल दी। भिटौरा घाट पर स्वामी विज्ञानानन्द आश्रम के बगल आधा सैकड़ा से अधिक दुर्गा प्रतिमाओं का भूमि विसर्जन हुआ। इसी प्रकार नौबस्ता घाट पर भी बड़ी संख्या में दुर्गा प्रतिमाएं विसर्जित की गयीं। दुर्गा प्रतिमा स्थापना के बाद यह पहला अवसर ही था जब विसर्जन वाले दिन गंगा के जल प्रवाह वाले घाटों पर पूरे दिन सन्नाटा पसरा रहा। अनजाने में एक-दो मूर्तियां ही गंगा में विसर्जित की गयीं, लेकिन उन देवी भक्तों को भी जब भूविर्सजन की पहल के बारे में जानकारी हुई तो उन्होंने भी आगे से गंगा में विसर्जन न करने का संकल्प लिया।

जागरण ने गंगा को बचाना है अभियान की शुरुआत की। एक से दो फिर तीन लोग जुड़ते गये और कारवां बनता गया। गंगा बचाओ अभियान में दशकों से लगे स्वामी विज्ञानानन्द जी जो एकला चलो से थकहार गये थे, उनके साथ भी गंगा बचाने वालों की फौज जुड़ गयी। जब लोगों को पता चला कि दुर्गा पूजा महोत्सव के बाद दुर्गा प्रतिमाओं व निष्प्रयोज्य पूजन सामग्री के विसर्जन से अकेले जनपद में ही सोलह सौ टन से अधिक की गंदगी प्रदूषण के रूप में गंगा में पहुंच रही है। इसे दुर्गा भक्त ही रोक सकते हैं तो भूमि विसर्जन के संकल्प का सिलसिला शुरू हो गया। जिले की एक सौ सात समितियों ने बाकायदा भूविसर्जन के लिए बाकायदा संकल्प पत्र भरा। स्कूली बच्चों ने बच्चों जहां गंगा रक्षा पर विभिन्न कार्यक्रम करके लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया, वहीं महिलाओं की मंडलियां भी गंगा को बचाने के लिए निकल पड़ीं। पितृ विसर्जन अमावस्या पर गंगा रक्षा मंच, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, नेहरू युवा संगठन, पर्यावरण संस्थान, स्वर्णा समिति, जन कल्याण महासमिति, ब्राह्माण चेतना मंच, अखिल भारतीय वैश्य एकता परिषद, स्काउट गाइड जैसे दर्जनों संगठनों ने एकजुट होकर गंगा को बचाने का संकल्प लिया। गंगा भक्त जागे तो प्रशासन भी चेता और गंगा में शव प्रवाह पर कड़ाई से रोक के फरमान जारी हुए। गंगा में मछली-कछुआ आदि का आखेट व निप्रयोज्य सामग्री का प्रवाह रोकने के लिए तटवर्ती गांवों की समितियां सक्रिय हुईं।



7 अक्तू॰ 2008

फतेहपुर के इतिहास सन्दर्भ - फेड्रिक सालमन ग्राउस

3 अक्तू॰ 2008

जब गाँधी जी हुए फतेहपुर से नाराज....

चल पड़े जिधर दो डग मग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर, पड़ गयी जिधर भी एक दृष्टि, गड़ गये कोटि दृग उसी ओर। राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी ने यह भावाव्यक्ति ऐसे युग पुरुष के लिये की थी जो अहिंसा के बल पर देश को आजादी दिलायी। जब हम राष्ट्रपिता बापू की जयंती मना रहे हैं ऐसे में उन दृश्यों को याद करना जरूरी है जब वह हमारे और आपके बीच आये और कुछ ऐसी प्रेरणा दी जिससे स्वदेशी की भावना बलवती हुई और विदेशी वस्तुओं की होलियां जलने लगीं।

साबरमती के संत की अगुवाई में जब समूचा देश दासता से मुक्त होने के लिये लड़ाई लड़ रहा था उस समय उनकी झलक पाने को हर कोई लालायित था। वाक्या वर्ष 1920 का है। महात्मा गांधी ट्रेन द्वारा कानपुर से इलाहाबाद जा रहे थे। क्रांतिकारियों को जब सूचना मिली कि बापू जनपद से गुजर रहे हैं। फतेहपुर रेलवे स्टेशन में बाबू बंशगोपाल, शिवदयाल उपाध्याय, गुरुप्रसाद पांडेय, पन्नालाल गुप्त, शिवदत्त तिवारी, यदुनंदन, रघुनंदन पांडेय, देवीदयाल अग्निहोत्री सहित बड़ी तादात में लोग बापू से मिलने पहुंच गये। गाड़ी आते ही भीड़ ने महात्मा गांधी जिन्दाबाद के नारे लगाये। बापू बोगी से बाहर नहीं निकले। अपने साथी लियाकत अली को भेजकर क्रांतिकारियों से पुंछवाया की विदेशी कपड़ों की होली जलायी गयी है या नहीं। का जवाब मिलने पर उन्होंने कहा कि पहले विदेशी कपड़ों की होली जलायें इसके बाद मैं फतेहपुर आऊंगा। क्रांतिकारियों ने मिलने की अनुनय-विनय की, लेकिन वह नहीं उतरे। कुछ क्रांतिकारी तो बिना टिकट ट्रेन में बैठकर इलाहाबाद चले गये।

महात्मा गांधी दोबारा वर्ष 1929 में पत्‍‌नी कस्तूरबा गांधी, खान अब्दुल गफ्फार खां लियाकत अली के साथ जनपद आये। पूरा एक दिन के समय में वह फतेहपुर, बिन्दकी सहित चौडगरा स्थित फसीहाबाग स्थल पर पहुंचे और कई जगह जनसभाओं को भी संबोधित किया। बिन्दकी के रामलीला मैदान में जिस समय तिरंगा फहराकर स्वतंत्रता का विगुल फूंका, क्रांतिकारी ही नहीं आम जनमानस के अंदर आजादी का जुनून सिर चढ़कर बोलने लगा। वर्ष 1929 में बापू गोपालगंज स्थित फसीहाबाग पहुंचकर अमर शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी। इसके बाद यहां से पैदल बिन्दकी के रामलीला मैदान में पहुंचे। यहां पर जनसभा को संबोधित किया। फतेहपुर शहर के हजारी लाल फाटक में गांधी जी ने जनसभा करके आजादी का विगुल फूंका
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(साभार : जागरण-याहू-इंडिया )

2 अक्तू॰ 2008

फतेहपुर का पहला सन्दर्भ-ग्रन्थ अनुवाक






आज है मुबारक ईद!

आज का दिन मुस्लिम समाज के लिए खुशियों भरा होगा।मुसलमानों का त्योहार ईद उल-फ़ित्र इसलाम के उपवास के महीने रमज़ान को समाप्त करते हुए मनाया जाता है। इस ईद में ३० दिनों के बाद पहली बार दिन में खाना खाते हैं। उपवास की समाप्ती की खुशी के अलावा, इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रियादा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त, नए कपड़े भी पहने जाते हैं, और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है।ईद के दिन मस्जिद में सुबह की प्रार्थना से पहले, हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ित्र कहते हैं। लोग गले लगकर एक-दूसरे को ईद की मुबारकबाद देंगे। सेवइयों व शीर-खुरमे के साथ मुंह मीठा कराएंगे। मुख्य नमाज ईदगाह में होगी । रोजेदारों की खुशी के इजहार के विशेष दिन ईदुल फितर को लेकर मुस्लिम समाज में काफी उत्साह है। घर-घर मीठी सेवइयों व शीर-खुरमा सहित खास पकवान बनाए जा रहे हैं। ईद पर एक-दूसरे के घर जाकर मुबारकबाद दी जाएगी और जायकेदार सेवइया खिलाकर स्वागत किया जाएगा।ईद के दिन सब ख़ुश रहते हैं। लेकिन बच्चों की ख़ुशी का क्या कहना! उन्हें मेले में दोस्तों के साथ घूमना, अपनी पसन्द की चीज़ें ख़रीदना और ख़ूब मौज-मस्ती करना अच्छा लगता है। इन सब कामों के लिए पैसों की ज़रूरत होती है और ईद के दिन पैसों की कोई कमी होती नहीं है। ईद के दिन ईदी जो मिलती है। हर बड़ा अपने से छोटे को अपनी हैसियत के हिसाब से कुछ रुपए देता है, इसी रक़म को ईदी कहते हैं छोटे बड़ों के सामने जाते हैं, सलाम करते हैं और ईद मुबारक कहते हैं, बस! हो गई ईदी पक्की।

1 अक्तू॰ 2008

आइये इस नवरात्र में हम भी यह संकल्प लें!

पतित पावनी तो पूज्य हैं साथ ही जिन्हें हम पूजते हैं, श्रद्धा के फूल चढ़ाते हैं उन्हीं मूर्तियों, पूज्य देव स्वरूपों को गंगा को और मैली करने के लिये उनकी गोदी में सौंप देते हैं। क्या यही हमारी भावना और भक्ति है कि पहले से ही बहायी जाने वाली लाशों गन्दे नालों के पानी से कराह रही भागीरथी को और भी कष्ट और प्रदूषण में डालें। गंगा मैली और प्रदूषित तो पहले से ही हैं। गंगा बचाओ अभियान में आदि शक्ति मां जगदंबा की जनपद में स्थापित की जाने वाली हजारों मूर्तियों का गंगा में विसर्जन यदि रोक दिया जाये तो लाखों टन गंदगी से मां सुरसरि को बचाया जा सकता है।जरा गौर करें मूर्तियों प्रतिमायें मिट्टी, चूना, लकड़ी, बांस, पुआल, रासायनिक पेंट, प्लास्टर आफ पेरिस आदि सामग्री से तैयार की जाती हैं इसके साथ ही मूर्तियों की साज-सज्जा में कपड़े, प्लास्टिक रेडीमेड गहनें, फूल-माला, हवन सामग्री सहित पूजन की कुंतलों निष्प्रयोज्य सामग्री मूर्तियों के साथ ही गंगा को सौंप दी जाती हैं। आस्था और भक्ति के साथ हम देवी प्रतिमाओं का विसर्जन पवित्र गंगा में करते हैं उस समय यह नहीं सोचते कि जीवनदायिनी के जीवन को ही हम संकट में डाल रहे हैं। जनपद में तकरीबन एक हजार दुर्गा पंडाल सजाये जाते हैं जिनमें अन्य देवी देवताओं की सब मूर्तियों को यदि जोड़ लिया जाये तो संख्या पांच हजार से अधिक पहुंच जाती है। एक मूर्ति का वजन लगभग पचास किलो होता है इस तरह से आठ सौ टन मूर्तियां और उसके साथ लगभग इतनी ही निष्प्रयोज्य पूजन सामग्री यानि सोलह सौ टन प्रदूषण गंगा में विसर्जित करना कहां की आस्था मानी जायेगी।निर्मल धवल गंगा हमारे जीवन खुशहाली का प्रतीक है। इसे यदि हम नहीं बचा पाये तो जीवन का अस्तित्व ही संकट में हो जायेगा। संत समाज में मां गंगा को निर्मल अविरल करने का जो बीड़ा उठाया है उसमें जन-जन का सहयोग जरूरी है। डुबकी लगाकर मोक्ष और भक्ति की कामना करने के साथ ही हम गंगा को मां के रूप में पूजते हैं। यह देखना है कि कहीं हमारी आस्था से ही लिपट कर प्रदूषण तो मां के आंचल में तो नहीं पहुंच रहा। जिस तरह से अपने अस्तित्व के लिये भागीरथी को आज जूझना पड़ रहा है उसमें टेनरियों का गंदा पानी तो मुख्य कारक है ही शवों के प्रवाह के साथ मूर्तियों का विसर्जन भी एक बहुत बड़ा कारण माना जा रहा है। संतों का कहना है कि मूर्तियों का विसर्जन यदि रोक दिया जाये तो मां गंगा के प्रदूषण को ज्यादा नहीं तो पचीस फीसदी कम ही किया जा सकता है। यह कार्य आस्थावान लोगों को ही सोचना होगा। बताते हैं कि मूर्तियों का केमिकल जब पानी में घुलता है तो वह जलजीवों के लिये भी संकट बन जाता है। छोटी मछलियां अन्य जीव बड़ी संख्या में मर जाते हैं। संतों का यह भी कहना है कि आस्था के लिहाज से मूर्तियों का विसर्जन इसलिए भी उचित नहीं है कि गंगा का पानी जब कम हो जाता है तो तमाम मूर्तियां पानी में घुल नहीं पातीं और फिर लोगों के पैरों तले कुचलती हैं। मूर्तियों के विसर्जन से जलजीवों के संकट के साथ गंगा का पानी सड़ांध से महकने लगता है। प्लास्टर आफ पेरिस इतना नुकसान देय होता है कि पानी में घुलने के साथ ही यह विषाक्त हो जाता है। गंगा जल पीने से स्वास्थ्य के लिये भी नुकसानदेय हो सकता है। तीस सितंबर से दुर्गा पूजा महोत्सव शुरू हो रहा है। दशहरा के एक दिन पहले से मूर्तियों का विसर्जन शुरू हो जाता है जो लगातार तीन दिनों तक चलता है। इसके पूर्व गणेश पूजा महोत्सव में एक दर्जन से अधिक मूर्तियों का विसर्जन गंगा जी में किया गया। घर-घर पूजे जाने वाले लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां, देवी-देवताओं के चित्र घरों में अन्य देवताओं की चीनी मिट्टी, प्लास्टर आफ पेरिस मिट्टी की बनी मूर्तियों को भी सभी लोग गंगा जी में प्रवाह करते हैं। सच्चे मन से यदि गंगा को पवित्र करने का संकल्प है तो इस वर्ष मूर्तियों के गंगा जी में विसर्जन को रोककर हम सभी पवित्र गंगा को निर्मल अविरल करने में सहायक हो सकते हैं।
भस्म डालें खेत में, गंगा तट पर जमीन के अंदर करें मूर्तियों का विसर्जन
देवी-देवताओं की पूज्य स्वरूपा मूर्तियों के विसर्जन में शास्त्रों के मत को यदि लें तो जमीन के अंदर विसर्जित करना सबसे उत्तम है। संत कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ की बारह वर्ष बाद निकलने वाली शोभायात्रा में भी मूर्ति को समुद्र किनारे जमीन के अंदर ही विसर्जित किया जाता है। मूर्ति को समुद्र नदी में नहीं विसर्जित किया जाता। हवन की भस्म पूजन सामग्री को खेतों में यदि डाल देंगे तो वह सबसे उत्तम है। भस्म खेत में पड़ जाने से अच्छी पैदावार के साथ अन्न खाने से मन शुद्ध हो जाता है।

मां गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के अभियान में लगे स्वामी विज्ञानानन्द जी कहना है कि मूर्तियों का विसर्जन यदि गंगा जी से रोक दिया जाये तो एक चौथाई प्रदूषण कम हो जायेगा। उन्होंने कहा कि मूर्तियों को वैदिक मंत्रों के साथ जमीन के अंदर गड्ढा खोदकर विसर्जित करना सबसे उत्तम है। यदि गंगा की पवित्र माटी में ही लाने की इच्छा भक्तों में बलवती हो तो वह गंगा तट पर बालू के नीचे भी मूर्तियों को विसर्जित कर सकते हैं। चार से पांच फिट गहरायी पर मूर्तियों का विसर्जन मंत्रों के साथ करें। मूर्तियों के विसर्जन से यदि मां भागीरथी का आंचल गंदा होगा तो मां जगदम्बा की भक्ति नहीं मिल सकती है।

रविकांत ने किया जिले का नाम रोशन

किसी ने शायद सच ही कहा है कि अगर व्यक्ति के अंदर जोश और कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो मार्ग में आने वाला कोई भी रोड़ा उसे लक्ष्य तक पहुंचने से रोक नहीं सकता। यह बात साबित कर दी है जिले के होनहार खिलाड़ी रविकांत मिश्रा ने। वर्ष 2006 से क्रिकेट के सफर की शुरूआत करने वाले रवि ने सबसे पहले बरेली स्टेडियम में 14वीं जूनियर स्टेट चैंपियनशिप खेल में हिस्सा लिया, इसके लिये इनका चयन यूपी टीम में किया गया। इसके बाद जूनियर नेशनल 20-20 क्रिकेट प्रतियोगिता में यूपी टीम समेत कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। इसके अलावा रवि इंडोनेपाल 20-20 क्रिकेट टीम के उप कप्तान भी रहे।

रविकांत का चयन भारतीय टेनिस बाल क्रिकेट टीम में हो गया है जो युवा मंत्रालय भारत सरकार के सौजन्य से श्रीलंका में आयोजित तृतीय एशिया कप में हिस्सा लेने कोलंबो, मटारा जा रही है। मंगलवार को कलक्टरगंज स्थित लाजहीरा में पत्रकारों से रूबरू होते हुए रविकांत ने बताया कि इस एशिया कप का प्रसारण श्रीलंकाई चैनल (चैनल आई) में लाइव टेलिकास्ट किया जायेगा जिसका भारत में प्रसारण 12 अक्टूबर को शाम 4 से 6 बजे तक दिखाया जायेगा।उन्होंने बताया कि लगन, मेहनत और माता-पिता के आर्शीवाद का नतीजा है कि आज वह इस मुकाम तक पहुंचे है।


साभार -जागरण याहू समाचार