14 मार्च 2009

पचास हजार युवाओं का भविष्य बंडलों में कैद

 

लोकसभा सामान्य निर्वाचन 2009 की चुनावी प्रक्रिया से नौकरी की आस लगाये पचास हजार युवाओं को झटका लगा है। ग्राम पंचायत अधिकारी, ग्राम विकास अधिकारी, लेखपाल सहित सिंचाई विभाग के कुछ पदों के लिये आवेदन किये अभ्यर्थी मायूस हो गये हैं। कहते हैं कि आचार संहिता समाप्त होने के बाद पता नहीं भर्ती प्रक्रिया होगी या फिर निरस्त कर दी जायेगी।

लोकसभा चुनाव की तिथियां घोषित होने के पहले प्रदेश सरकार ने सरकारी नौकरियों के लिये पोटली खोल दी थी। विभिन्न पदों के लिये जिले में दो सौ से अधिक पदों के लिये आवेदन मांगे गये थे। सर्वाधिक आवेदन तो ग्राम पंचायत अधिकारी के चवालीस पदों के लिये सत्ताइस हजार आये हुए थे, लेखपाल के उन्नीस पदों के लिये दो हजार से अधिक आवेदन संकलित हुए। लेखपाल पद के लिये तो लिखित परीक्षा की तिथि भी निर्धारित हो गयी थी। ग्राम विकास अधिकारी पद के लिये भी पंद्रह हजार से अधिक आवेदन इकट्ठा हो गये हैं। जिस तेजी के साथ चयन प्रक्रिया चल रही थी उससे यह लग रहा था कि चुनाव तिथि घोषित होने के पहले ही शिक्षित बेरोजगारों को नौकरी का तोहफा मिल जायेगा। चुनाव तिथि घोषित होने के साथ ही आचार संहिता का शिकंजा कस गया और चयन प्रक्रिया जहा थी वहीं पर रोक दी गयी।

ग्राम पंचायत अधिकारी पद के लिये सत्ताइस हजार आवेदनों की छंटनी का काम तो पूरा हो गया है। साक्षात्कार के साथ ही चयन प्रक्रिया के लिये शासन के कोई निर्देश नहीं आये थे। बताते हैं कि आचार संहिता के बाद ग्राम पंचायत अधिकारी के सभी पदों की भर्ती प्रक्रिया रोक दी गयी है। ऐसे में सत्ताइस हजार अभ्यर्थी जो नौकरी के लिये आस लगाये हुए थे मायूस हो गये हैं। अभ्यर्थियों का यह भी मानना है कि चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद चयन प्रक्रिया निरस्त भी की जा सकती है। तीन माह की लंबी प्रतीक्षा केवल इस नौकरी की आस पर नहीं की जा सकती है। ग्राम विकास अधिकारी के दो दर्जन पदों के लिये आवेदन ही संकलित होने के साथ काम ठप कर दिया गया। बताते हैं कि इस प्रक्रिया में अभी आगे के कोई निर्देश शासन से नहीं मिले हैं। लेखपाल पद के लिये भी लिखित परीक्षा की तिथि सोलह मई के बाद ही निर्धारित की जायेगी। इस तरह से आचार संहिता लागू होने से पचास हजार से अधिक शिक्षित बेरोजगारों की उम्मीदों को झटका लगा है।

तीन माह तक मंद रहेगा विकास का पहिया

उधर वित्तीय वर्ष के अंत में करोड़ों के बजट को खर्च करने की मारामारी से इस बार अफसर बेफिक्र हैं। आचार संहिता लागू होने से तीन माह तक विकास का पहिया मंद रहेगा। अफसरों को विकास योजनाओं की मानीटरिंग की फुर्सत नहीं है। नई योजनाओं का शुभारंभ होना नहीं और पुरानी योजनाओं पर ही किसी तरह से काम कराया जा रहा है। वित्तीय वर्ष के अंतिम पखवारे में स्थिति यह रहती है कि करोड़ों का बजट अवमुक्त कराने के साथ खर्च करने की होड़ में विभाग उलझे रहते हैं। इस बार आचार संहिता लागू हो जाने से विभागाध्यक्ष बेफिक्र हैं।

2 टिप्‍पणियां:
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  1. अबतो मई के उत्तरार्ध तक ही यह प्रक्रिया शुरू हो पायेगी !

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  2. चुनावों के बाद ही कोई भी शासकीय कार्य /विकास कार्य हो सकते है . लोकतंत्र में व्यवस्था के तहत आचार सहिंता का पालन सभी को करना ही पड़ता है .

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