5 अप्रैल 2009

संसदीय इतिहास में 78 के उप चुनाव की तस्वीर जब राष्ट्रकवि भी हो गये थे जिला बदर

 

चार दिन तक जिले में टिककर छत्तीस जनसभायें कर चुनावी माहौल का रुख मोड़ने में और कोई नहीं पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने वर्ष 1978 के उप चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी थी। संसदीय क्षेत्र के इतिहास में 78 के उप चुनाव की तस्वीर को कोई भूल नहीं सकता। इस चुनाव में जिले में पूरे देश की राजनीति केन्द्रित हो गयी थी। इन्दिरा गांधी की जनसभाओं को मात देने के लिये विपक्ष से सुषमा स्वराज लगी हुई थीं। स्थिति यह थी कि कांग्रेस के राष्ट्रीय व प्रान्तीय नेता बूथों में बस्ते लगाकर बैठे थे। एक साल बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस के विरुद्ध जनाक्रोश की ज्वाला तो भड़क रही थी। कुछ तो ठंडी हुई, लेकिन एकजुट विपक्ष के सामने सीट कांग्रेस की झोली में जाते-जाते रुक गयी।

जनता पार्टी के सांसद वशीर अहमद की आकस्मिक मौत हो जाने के कारण संसदीय क्षेत्र में वर्ष 1978 में उपचुनाव घोषित किया गया। इस चुनाव में कांग्रेस ने वरिष्ठ कांग्रेसी पूर्व विधायक प्रेमदत्त तिवारी को चुनाव मैदान में उतारा। पार्टी पहले बाहरी को ही प्रत्याशी बनाना चाहती थी, लेकिन दोनों गुटों के कांग्रेसियों की मांग पर जिले के आधा दर्जन दावेदारों में श्री तिवारी के नाम पर इन्दिरा गांधी ने मोहर लगा दी। लोकदल जिसे सभी विपक्षियों का समर्थन प्राप्त था से लियाकत हुसेन को प्रत्याशी बनाया गया।

दिलचस्प पहलू यह था कि चुनाव में कांग्रेस हो या विपक्ष देश व प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें इस सीट पर लगी हुई थीं। कांग्रेस से पूर्व गृहमंत्री उमाशंकर दीक्षित, मोहसिना किदवई, नारायण दत्त तिवारी, राजेन्द्र कुमारी बाजपेयी सहित कर्नाटक के मुख्यमंत्री देवराज अर्ग कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवकांत बरुआ सहित आधा सैकड़ा से अधिक राष्ट्रीय व प्रान्तीय नेता डेरा डाले रहे। कांग्रेस की मुखिया स्व.इन्दिरा गांधी चार दिन तक जिले में टिककर छत्तीय जनसभायें कीं। खखरेरू की जनसभा में विपक्षियों की लामबंदी से पूर्व प्रधानमंत्री की गाड़ी पर पथराव हुआ। नारेबाजी के साथ कई जगह विरोध के स्वर मुखर हुए इसके बाद भी पूर्व प्रधानमंत्री ने जगह-जगह जनसभायें कर बदलाव का विगुल फूंक दिया। प्रदेश की वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री राजेन्द्र कुमारी बाजपेयी, प्रेमवती तिवारी, स्वरूपरानी बख्शी, मोहसिना किदवई के साथ जिले की महिला टीम का नेतृत्व श्रीमती शारदा मिश्रा, मालती श्रीवास्तव आदि ने किया। जनता पार्टी की सत्ता की हनक कम नहीं रही। जानकार लोगों ने बताया कि उस समय सत्ता की हनक के चलते पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को टिकने के लिये डाकबंगले तक उपलब्ध नहीं हो पाये थे। पार्टी ने सभी बंगलों को अधिगृहीत कर लिया था। अंतत: इन्दिरा गांधी को नगर पालिका के बिना हस्तांतरित हुए नवनिर्मित डाक बंगले में टिकाया गया। राष्ट्रीय व प्रान्तीय नेता गली-कूचों में न केवल घूमे बल्कि मतदान के दिन बस्ते लगाकर भी बैठे।

ऐसे में जब कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंक दी हो तो सत्ता की हनक रखने वाला विपक्ष क्यों पीछे रहे। लोकदल से लियाकत हुसेन को प्रत्याशी बनाया गया था। जनसंघ सहित अन्य विपक्षियों का समर्थन हासिल किये प्रत्याशी को जिताने के लिये अटल बिहारी बाजपेयी, जार्ज फर्नाडीज, राजनारायण, चौ.चरण सिंह, कांग्रेस से अलग हुए एचएन बहुगुणा जैसे कई दिग्गज नेताओं ने जगह-जगह जनसभायें कीं। सुषमा स्वराज तो कई दिनों तक जिले में डेरा डाले रहीं। इन्दिरा गांधी की जनसभायें जहां पर होती थीं उसी के इर्द-गिर्द श्रीमती स्वराज दहाड़कर लियाकत के लिये वोट मांग रही थीं। कांग्रेसियों का कहना है कि शासन और प्रशासन सत्ता पक्ष की हनक पर काम कर रहा था। चूंकि 1977 के चुनाव में आपातकाल, परिवार नियोजन जैसे मुद्दों का घाव जनता में भरा नहीं था इसलिए पार्टी की झोली में सीट तो नहीं आ पायी, लेकिन दिग्गज नेताओं के प्रयास से एक साल में ही वोट बैंक दूना पहुंच गया।

सतहत्तर के चुनाव में कांग्रेस को उखाड़ फेंकने का जो जुनून था वह उपचुनाव में नहीं देखा गया तभी तो अड़तालीस फीसदी की जगह उप चुनाव में मतदान चालीस फीसदी में ही सिमट गया। छ: लाख छियालीस हजार मतदाताओं में से दो लाख उन्यासी हजार मतदाताओं ने वोट डाले। लोकदल प्रत्याशी लियाकत हुसेन एक लाख तीस हजार छ: सौ इक्कीस मत पाकर सीट को बरकरार रखी। कांग्रेस प्रत्याशी प्रेमदत्त तिवारी को एक लाख पांच हजार वोट मिले। इस चुनाव में डमी उम्मीदवारों की भी खासी भीड़ थी। प्रियदर्शन यादव बारह हजार वोट समेटकर कांग्रेस को पराजित करने में विपक्ष का साथ दिया। इसी प्रकार अनुसूचित जाति के कई प्रत्याशियों ने पांच हजार से अधिक मत बटोरे।

राष्ट्रकवि भी हो गये थे जिला बदर

उपचुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी प्रेमदत्त तिवारी अपने संस्मरण बताते हुए कहा कि उस समय न तो चुनाव आयोग का डंडा था। सत्ता की हनक काम कर रही थी। उस समय कांग्रेस का वोट बैंक कहे जाने वाले ब्राह्मणों को जिला बदर की सूची में डालकर मतदान से बाहर कर दिया गया था। राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी, पूर्व ब्लाक प्रमुख सोमदत्त द्विवेदी जो उनके चचेरे भाई थे सहित कई रिश्तेदारों व करीबियों को जिला बदर की सूची में डाला गया था। उस समय इन्दिरा गांधी भी यह कार्यवाही देखकर दंग रह गयीं और उन्होंने यह कहा कि इस पर पिटीशन कर दें

(दैनिक जागरण से साभार)

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