30 अप्रैल 2009

kab aayega ye din dosto

 

Raah dekhi thi is din ki kabse,
Aage ke sapne saja rakhe the naajane kab se,
Bade utavle the yahaan se jaane ko ,
Zindagi ka agla padaav paane ko .

Par naa jane kyon …Dil mein aaj kuch aur aata hai,
Waqt ko rokne ka jee chahta hai,
Jin baton ko lekar rote the Aaj un par hansi aati hai,
Na jaane kyon aaj un palon ki yaad bahut aati hai,

Kaha karte the …Badi mushkil se char saal seh gaya,
Par aaj kyon lagta hai ki kuch peeche reh gaya,
Na bhoolne wali kuch yaadein reh gayi,
Yaadien jo ab jeene ka sahara ban gayi.

Meri taang ab kaun kheencha karega,
Sirf mera sir khane kaun mera peecha karega,
Jahaan 2000 ka hisaab nahin wahaan 2 rupay ke liye kaun ladega,

Kaun raat bhar saath jag kar padega ,
Kaun mere naye naye naam banayega.
Mein ab bina matlab kis se ladoonga,
Bina topic ke kisse faalto baat karoonga,

Kaun fail hone par dilasa dilayega,
Kaun galti se number aane par gaaliyaan sunayega,
Tapri mein Chai kis ke saath piyoonga ,
Wo haseen pal ab kis ke saath jiyoonga,

Aise dost kahaan milenge Jo khai mein bhi dhakka de aayein,
Par fir tumhein bachane khud bhi kood jayein.
Mere gaano se pareshaan kaun hoga,
Kabhi muje kisi ladki se baat karte dekh hairaan kaun hoga,

Kaun kahega saale tere
joke pe hansi nahin aai,
Kaun peeche se bula ke kahega.. aage dekh bhai.

Movies mein kiske saath dekhhonga,
Kis ke saath boring lectures jheloonga ,
Bina dare sachi rai dene ki himmat kaun karega.
Achanak bin matlab ke kisi ko bhi dekh kar paglon ki tarah hansna,
Na jaane ye fir kab hoga.

Doston ke liye professore kab lad payenge ,
Kya hum ye fir kar payenge,
Raat ko 2 Maggiii khane HCL kaun jayega,
Tez gaadi chalane ki shart kaun lagayega.

Kaun muje mere kabiliyat par bharosa dilayega,
Aur jyada hawa mein udne par zameen pe layege,
Meri khushi mein sach mein khush kaun hoga,
Mere gam mein muj se jyada dukhi kaun hoga…

KeH DO DOSTON YE DOBAARA KAB HOGA

28 अप्रैल 2009

नई Jobs

27 अप्रैल 2009

फतेहपुर में इस बार तीन राष्ट्रीय दलों के अध्यक्ष अपनी किस्मत आजमा रहे

संसदीय क्षेत्र फतेहपुर में इस बार तीन राष्ट्रीय दलों के अध्यक्ष अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। जनमोर्चा, अपना दल एवं इंडियन जस्टिस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अपना चुनाव प्रचार चरम सीमा पर पहुंचा चुके हैं और अपनी-अपनी ताकत का इजहार कर यह जताना चाहते हैं कि हमारे दलों में कितना दम है।

जनमोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री स्व. वीपी सिंह के पुत्र अजेय सिंह जो पिछले एक पखवारे से अपने पिता के कार्यो के नाम पर वोट मांग रहे हैं। उनको हर वर्ग का समर्थन मिल रहा है। स्व. वीपी सिंह यहां से दो बार चुनाव लड़ चुके हैं और यहां के मतदाताओं ने उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी तक में बैठाया। अजेय सिंह के अनुसार फतेहपुर हमारे पिता की कर्मभूमि रही है और उन्होंने यहां विकास का पहिया घुमाया। देश में आरक्षण व्यवस्था लागू करके पिछड़े वर्गो में मुस्कान भरी वहीं मुस्लिमों के बीच अच्छी तस्वीर पेश की। जिसका परिणाम आज अजेय सिंह को मिल रहा है। पिछड़े वर्ग के मतदाताओं व मुस्लिमों का समर्थन देखकर अजेय सिंह काफी गदगद हैं और उनको आशा है कि इस चुनाव में जरूर सफल होंगे।

संसदीय क्षेत्र में अपना दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनेलाल पटेल भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। फूलपुर का चुनाव संपन्न होने के बाद उन्होंने पूरी ताकत इस संसदीय क्षेत्र में झोंक दी है। श्री पटेल का फतेहपुर के धाता, किशुनपुर, जहानाबाद, अमौली, देवमई आदि क्षेत्रों में व्यापक प्रभाव है। वर्ष 2002 में उनके दल का प्रत्याशी अशोक कैथल किशुनपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था, जिसे चौबीस हजार पांच सौ छियानवे मत प्राप्त हुये थे और वह तीसरे नंबर पर था। श्री पटेल समय-समय पर फतेहपुर में आकर यहां की समस्याओं से रुबरू होते हैं और आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। श्री पटेल का दावा है कि उन्हें इस चुनाव में उनकी नीतियों को सफल बनाने के लिये उन्हें मतदाता जीत अवश्य दिलायेंगे।

इंडियन जस्टिस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. उदित राज आईएएस जिन्होंने अपनी नौकरी ठुकराकर बसपा का विकल्प अपनी पार्टी को बताते हुये चुनाव मैदान में उतरे हैं। डा. राज के अनुसार इलाहाबाद व कानपुर के बीच बसे इस जनपद में विकास यहां शून्य है। बिहार से भी बदतर जिला है। ऐसी स्थिति में उन्होंने यहां चुनाव लड़ने का फैसला किया और यदि यहां के मतदाता चुनाव जिताकर संसद भेजेंगे तो वह यहां विकास की गंगा बहा देंगे। उन्होंने कहा कि बहुजन समाजवादी पार्टी में माफियाओं का राज है, मायावती जिनको अपना वोट बैंक समझती है, उन्हीं पर इन माफियाओं द्वारा कहर ढाया जा रहा है। बसपा के जुल्मों के खिलाफ वह चुनाव मैदान में हैं। इंडियन जस्टिस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को कई इलाकों में हाथों हाथ लिया जा रहा है। उनकी होने वाली सभाओं में भीड़ भी कम नहीं रहती। उनकी विचारधारा को लोग सुनते हैं।

इस संसदीय क्षेत्र में यह तीनो महारथी क्या गुल खिलायेंगे यह तो चुनाव परिणाम ही बतायेगा।

18 अप्रैल 2009

आइये न एक-एक जूता हम भी चलायें....!!


............दोस्तों एक कलमकार का अपनी कलम छोड़ कर किसी भी तरह का दूसरा हथियार थामना बस इस बात का परिचायक है कि अब पीडा बहुत गहराती जा रही है और उसे मिटाने के तमाम उपाय ख़त्म....हम करें तो क्या करें...हम लिख रहें हैं....लिखते ही जा रहे हैं....और उससे कुछ बदलता हुआ सा नहीं दिखाई पड़ता....और तब भी हमें कोई फर्क नहीं पड़ता तो हमारी संवेदना में अवश्य ही कहीं कोई कमी है... मगर जिसे वाकई दर्द हो रहा है....और कलम वाकई कुछ नहीं कर पा रही....तो उसे धिक्कारना तो और भी बड़ा पाप है....दोस्तों जिसके गम में हम शरीक नहीं हो सकते....और जिसके गम को हम समझना भी नहीं चाहते तो हमारी समझ पर मुझे वाकई हैरानी हो रही है....जूता तो क्या कोई बन्दूक भी उठा सकता है.....बस कलेजे में दम हो.....हमारे-आपके कलेजे में तो वो है नहीं....जिसके कलेजे में है.....उसे लताड़ना कहीं हमारी हीन भावना ही तो नहीं...........??????
.............दोस्तों हमारे आस-पास रोज--रोज ऐसी-ऐसी बातें हो रही हैं और होती ही जा रही हैं,
जिन्हें नज़रंदाज़ कर बार-बार हम अपने ही पैरों में कुल्हाडी मारते जा रहे हैं....और यह सब वो लोग अंजाम दे रहे हैं, जिन्हें अपने लिए हम अपना नुमाइंदा "नियुक्त" करते हैं....!!यह नुमाइंदा हमारे द्वारा नियुक्त होते ही सबसे पहला जो काम करता है,वो काम है हमारी अवहेलना....हमारा अपमान....हमारा शोषण....और हमारे प्रत्येक हित की उपेक्षा.....!!.........दोस्तों यहाँ तक भी हो तो ठीक है.....लेकिन यह वर्ग आज इतना धन-पिपासू....यौन-पिपासू.... जमीन-जायदाद-पिपासू.....इतना अहंकारी और गलीच हो चुका है कि अपने इन तीन सूत्री कार्यक्रम के लिए हर मिनट ये देश के साथ द्रोह तक कर डालता है....देश के हितों का सौदा कर डालता है....यह स्थिति दरअसल इतने खतरनाक स्तर तक पहुँच चुकी है कि इस वर्ग को अब किसी का भय ही नहीं रह गया है....पैसे और ताकत के मद में चूर यह वर्ग अब अपने आगे देश को भी बौना बनाए रखता है.....निजी क्षेत्र के किए गए कार्यों की भी यह ऐसी की तैसी किए दे रहा है.....निजी क्षेत्र ने इस देश की तरक्की में जो अमूल्य योगदान सिर्फ़ अपनी मेहनत-हुनर और अनुशासन के बूते दिया है.....यह स्वयम्भू वर्ग उसके श्रेय को भी ख़ुद ही बटोर लेना चाहता है....और यहाँ तक कि यह वर्ग अपने पद और रसूख के बूते उनका भी शोसन कर लेता है.....यानी कि इसकी दोहरी मार से कोई भी बचा हुआ नहीं है......!!
यह स्थिति वर्षों से जारी है...और ना सिर्फ़ जारी है....बल्कि आज तो यह घाव एक बहुत बड़ा नासूर बन चुका है...अब इसे अनदेखा करना हमारे और आप सबके लिए इतनी घातक है कि इसकी कल्पना तक आप नहीं कर सकते........आन्दोलन तो खैर आने वाले समय में होगा ही किंतु इस समय इस लोकतंत्र का महापर्व चल रहा है.....इस महापर्व का अवसान फिजूल में ही ना हो जाए....या कि यह एक प्रहसन ही ना बन जाए.....इसके लिए सबसे पहले हम जैसे पढ़े-लिखे लोगों को ही पहल करनी होगी.....क्योंकि मैं जानता हूँ कि सभ्य-सुसंस्कृत और पढ़े-लिखे माने जाने वाले सो कॉल्ड बड़े लोगों में अधिकाँश लोग अपने मत का प्रयोग तक नहीं करते....लम्बी लाईनों में लगना....धूप में सिकना....गंदे-संदे लोगों के साथ-साथ खड़े होना......घर की महिलाओं को इस गन्दी भीड़ का हिस्सा होते हुए ना देख पाना.....या किसी काल्पनिक हिंसा की आड़ लेकर चुनाव से बचना हमारा शगल है....!! मज़ा यह कि हम ही सबसे वाचाल वर्ग भी हैं.....जो समाज में सबसे ज्यादा हल्ला तरह-तरह के मंचों से मचाते रहते हैं.....कम-से-कम अपने एक मत (वोट)का प्रयोग कर ख़ुद को इस निंदा-पुराण का वाजिब हक़ दिला सकते हैं....वरना तो हमें राजनीति की आलोचना करने का भी कोई हक़ नहीं हैं......अगर वाकई मेरी बात सब लोगों तक पहुँच रही हो....तो इस अनाम से नागरिक की देश के समस्त लोगों से अपील है.....बल्कि प्रार्थना हैं कि इस चुनाव का वाजिब हिस्सा बनकर.....और कर्मठ लोगों को जीता कर हमारी संसद और विधान-सभाओं में पहुंचाएं.....और आगे से हम यह भी तय करें कि यह उम्मीदवार जीतने के पश्चात हमारे ही क्लच में रहे.....हमारे ही एक्सीलेटर बढ़ाने से चले.......!!
................दोस्तों बहुत हो चुका....बल्कि बहुत ज्यादा ही हो चुका......अब भी अगर यही होता दीखता है तो फिर तमाम लोग सड़क पर आने को तैयार हो जाए.....अब तमाम "गंदे-संदे.....मवालियों....देश के हितों का सौदा करने वालों.....जनता की अवहेलना करने वालों.....और इस तरह की तमाम हरकतें करने वालों को आमने-सामने मैदान में ही देख लिया जाए.....!!
.........तो फिर यह तय रहा कि चल रहे चुनाव में आप अपनी भागेदारी निश्चित करेंगे....संसद और विधान-सभाओं को अपराधियों और देश-द्रोहियों से मुक्त करायेंगे......फिर भी कोई अपराधी इन जगहों पर पहुँच ही जाते हैं.....तो इनका वाजिब इलाज भी करायेंगे.....यह निश्चित करें कि हम सब देश के हक़ लिए काम करें......तथा ऐसा ना करने वालों को सार्वजनिक दंड भी दें.........इसी आशा और मंगलकामना के साथ.....आपका भूतनाथ....एक अनजान नागरिक.....एक अनाम आवाज़.......!!......लेकिन ऐसी जो आपकी ही लगे.......!!!......सच.....!!!

17 अप्रैल 2009

कहीं आपके कम्पूटर को यह रोग तो नहीं ?

15 अप्रैल 2009

परदेसियों की प्रयोगस्थली रहा फतेहपुर का संसदीय क्षेत्र

राजनैतिक दलों द्वारा अन्य जिलों के नेताओं को तरजीह देने के कारण फतेहपुर संसदीय सीट पर अधिकांश समय गैर जिलों के लोगों ने ही लोकसभा में यहां का प्रतिनिधित्व किया। इसका असर यह हुआ कि जिले के विकास पर कम ध्यान दिया गया। जिसकी वजह से फतेहपुर सुविधाओं के मामले में अन्य जनपदों से काफी पीछे चल रहा है।

यहां चौदह लोकसभाओं के लिए चुने गए कुल 11 सांसदों में 8 परदेशी रहे, स्थानीय तीन ही लोगों को संसद में प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछडे़ इस जिले के लोगों में जागरूकता की कमी रही, जिससे उनको प्रमुख राजनैतिक दल प्रत्याशी बनाने से गुरेज करते रहे।गंगा यमुना के दोआबा क्षेत्र में स्थित फतेहपुर संसदीय क्षेत्र का दुर्भाग्य रहा कि आजादी के बाद यहां पर कोई ऐसा नेता नहीं मिला, जिसने सांसद पद के लिए कांग्रेस में कभी गंभीर दावेदारी की हो। उस दरम्यान कांग्रेस का ही बोलबाला था। 1952 में इलाहाबाद के रहने वाले शिवदत्त उपाध्याय और 1957 में भी इसी जिले के रहने वाले अंसार हरवानी ने प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद 1962 के चुनाव में देशी परदेशी का मुद्दा गरमाया तो जिले के रहने वाले अधिवक्ता गौरीशंकर कक्कड़ निर्दलीय सांसद चुने गए। इसके बाद 1967 और 71 में फिर से कांग्रेस के टिकट से प्रतापगढ़ जिले के रहने वाले संतबख्श सिंह सांसद रहे।

देश में इमरजेंसी लगाने पर कांग्रेस की छवि प्रभावित हुई तो 1977 में जनता पार्टी के टिकट से इलाहाबाद के रहने वाले वकील बशीर अहमद सांसद चुन लिए गए। इनकी मौत होने के कारण मध्यवधि चुनाव हुआ, जिसमें स्थानीय को जनता पार्टी ने तवज्जो देकर 1978 में चुनाव में उतारा तो लियाकत हुसैन सांसद बन गए। इसके बाद 1980 और 84 में बनारस के रहने वाले स्व। प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के पुत्र हरीकृष्ण शास्त्री ने कब्जा बरकरार रखा। इनके कब्जे से 1989 में राजा मांडा वीपी सिंह ने सीट छीनी और 1991 के चुनाव में भी कब्जा बरकरार रखा।

1996 में बांदा जिले के रहने वाले विशंभर के कब्जे में यह सीट चली गई। 1998 और 99 के चुनाव में जिले के रहने वाले डा. डाक्टर अशोक पटेल सांसद चुने गए। इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में बांदा जिले के ही रहने वाले बसपा के महेंद्र निषाद ने कब्जा कर लिया, जो अभी तक बरकरार है। खास बात तो यह है कि भाजपा को छोड़कर सभी प्रमुख राजनैतिक दलों के उम्मीदवार मूलरूप से गैर जिलों के हैं। यह बात दीगर है कि कुछ प्रत्याशियों ने आवासों का निर्माण करा अपने को मतदाता भी बना लिया है।

14 अप्रैल 2009

फतेहपुर : दो पूर्व प्रधानमंत्रियों के वारिसों की प्रतिष्ठा दाव पर

जिले की 49 लोकसभा सीट पर देश के दो प्रधानमंत्री के वारिसों की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है। वहीं बसपा सांसद, भाजपा के पूर्वमंत्री एवं सपा के पूर्व विधायक के मध्य जंग है। इस सीट पर दलीय मिलाकर अठारह प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। वहीं नये परसीमन पर 15 लाख, 41 हजार 572 मतदाता है जो तीस अप्रैल को अपने मताधिकार का प्रयोग करेगे।

बताते चलें कि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पौत्र विभाकर शास्त्री यहां से तीसरी बार लोकसभा का चुनाव कांग्रेस से लड़ रहे है। इन्हे पहली बार 1998 के लोकसभा के चुनाव में 24 हजार 688 मत मिले थे। वहीं दूसरी बार 1999 के लोकसभा चुनाव में इन्हें 94 हजार 32 वोट मिले थे। इस मरतबा विभाकर शास्त्री तीसरी बार पुन: भाग्य आजमा रहे है। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के पुत्र अजेय सिंह यहां से जनमोर्चा के टिकट पर चुनाव मैदान में डटे है। इनके पिता पूर्व प्रधानमंत्री श्री सिंह यहां की सीट से वर्ष 1989 में पहली बार लोकसभा का चुनाव जीते थे और देश के प्रधानमंत्री बने थे। इसके बाद 1991 के लोकसभा चुनाव में यहां की जनता ने इन्हें फिर जीत का सेहरा बांधकर दिल्ली भेजा था। इस बार इनके पुत्र यहां से पिता की विरासत पर सियासत करके अपनी प्रतिष्ठा दाव पर लगाये है।

बसपा सुप्रीमो ने सांसद महेंद्र प्रसाद निषाद को ही पुन: लोकसभा का प्रत्याशी बनाया है। इन्हे वर्ष 2002 के लोकसभा चुनाव में 1 लाख 63 हजार 356 वोट मिले थे और विजयी हुये थे। लेकिन इस बार इनसे पार्टी के कैडरबेस कार्यकर्ता उपेक्षित करने का आरोप लगाते हुये प्रत्याशी का विरोध कर इनकी राह में कांटे बिखेर हुये है। भाजपा ने पार्टी के सदर विधायक पूर्वमंत्री राधेश्याम गुप्ता को टिकट दिया है। वहीं सपा ने घाटमपुर के पूर्व विधायक राकेश सचान को लोकसभा का प्रत्याशी बनाया है। इन तीनों के मध्य ही कांटे की जंग बतायी जा रही है। वैसे चुनाव मैदान में कूदें सभी दलीय प्रत्याशी एक-दूसरे के वोट बैंक में सेधमारी करके अपनी स्थिति को सुधारने में लगे हुये है। यहां से अपना दल से राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनेलाल पटेल एवं इंडियन जस्टिस पार्टी से उदित राज भी चुनाव मैदान में है।

नये परिसीमन पर इस बार यहां की लोकसभा सीट में छह विधान सीटें सदर,खागा, बिंदकी, किशुनपुर, अयाह-शाह, हुसेनगंज एवं जहानाबाद है। जबकि पिछली बार के लोकसभा चुनाव में विधानसभा की पांच ही सीटें थी। जिसमें यहां की जहानाबाद विधानसभा सीट घाटमपुर लोकसभा में, खागा चायल संसदीय सीट में एवं बांदा लोकसभा में जुड़ी तिंदवारी विधानसभा सीट फतेहपुर की लोकसभा सीट में शामिल थी।

13 अप्रैल 2009

कबूतर - सोहन लाल द्विवेदी

भोले-भाले बहुत कबूतर
मैंने पाले बहुत कबूतर
ढंग ढंग के बहुत कबूतर
रंग रंग के बहुत कबूतर
कुछ उजले कुछ लाल कबूतर
चलते छम छम चाल कबूतर
कुछ नीले बैंजनी कबूतर
पहने हैं पैंजनी कबूतर
करते मुझको प्यार कबूतर
करते बड़ा दुलार कबूतर
आ उंगली पर झूम कबूतर
लेते हैं मुंह चूम कबूतर
रखते रेशम बाल कबूतर
चलते रुनझुन चाल कबूतर
गुटर गुटर गूँ बोल कबूतर
देते मिश्री घोल कबूतर।

बढे़ चलो, बढे़ चलो - सोहनलाल द्विवेदी

न हाथ एक अस्त्र हो,

न अन्न वीर वस्त्र हो,

हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

रहे समक्ष हिम-शिखर,

तुम्हारा प्रण उठे निखर,

भले ही जाए जन बिखर,

रुको नहीं, झुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

घटा घिरी अटूट हो,

अधर में कालकूट हो,

वही सुधा का घूंट हो,

जिये चलो, मरे चलो, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

गगन उगलता आग हो,

छिड़ा मरण का राग हो,

लहू का अपने फाग हो,

अड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

चलो नई मिसाल हो,

जलो नई मिसाल हो,

बढो़ नया कमाल हो,

झुको नही, रूको नही, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

अशेष रक्त तोल दो,

स्वतंत्रता का मोल दो,

कड़ी युगों की खोल दो,

डरो नही, मरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।