30 अक्तू॰ 2009

दूधीकगार का आंचल बृह्मबेला से ही आध्यात्मिक सुवास से सराबोर

देवोत्थानी एकादशी के शुभ मुहूर्त के मध्य श्रीबांके बिहारी जी और श्री शीतला माता की बारात धूमधाम के साथ निकली। शोभा यात्रा में अबला , वृद्घ, नर, नारी सभी सम्मिलित हुये। सुदूर ग्रामीणांचल से तो दर्शनार्थी और श्रद्घालु आये ही आसपास के जनपदों से लोग जुटे।

दूधीकगार का आंचल बृह्मबेला से ही आध्यात्मिक सुवास से सराबोर हो रहा था। गंगा के इस पार और उस पार दोनो ओर की चहल पहल भगवती भागीरथी के  दोनो किनारों के मध्य संवाद कायम कर रही थी। आज मां चंद्रिका जी उस पार से इस पार आ रही है इससे दोनो ही ओर उत्साह और उमंग गंगा की तरंग के मानिंद किल्लोल कर रही थीं।


प्रात: साढ़े सात बजे भक्तों के जयकारों के बीच मां का पूजन, वंदन, अर्चन और आरती के मध्य बारात  चली। पुष्पों अक्षत, गंध, अगरु, धूप, दीप से सुवासित आसन पर श्री बांके बिहारी, श्री चंद्रिका माता की मूर्तियों के साथ स्वामी श्री सतसंगानंद, स्वामी श्री परमानंद जी महाराज के विग्रहों के संग बारात चली। पतित पावनी की पूजा करने के लिये हजारों का हुजूम जुटा, जगह-जगह लोगों ने सेतु पूजन कर श्रद्घा का समर्पण निवेदित किया। ढोलक बजा कर मंगल गीत गाती महिलायें और ढोल, मृदंग, झांझ, मंजीरे की थापों के साथ रामनाम की धुन पर नाचता गाता पुरुष वर्ग समवेत रूप से भक्ति रस की वर्षा कर रहा था। सेतु के ऊपर झूमते श्रद्घालु और नीचे शांत, शीतल, निर्मल पतित पावनी का पावन प्रवाह पग-पग पर वीरान बीहड़ में आज आध्यात्मिकता की आंधी का आह्वान कर रहे थे।


बिना किसी बाहरी नियंत्रण के हजारों का हुजूम आत्मानुशासित हो चल रहा था। भांति भांति  की आकाशीय आतिशबाजी मन मोहने वाली थी तो पटाखे भी हवाओं में गूंज रहे थे। चार किलोमीटर का सफर लगभग चार घंटे में पूरा करके बारात आश्रम पहुंची जिसका स्वागत स्वनाम धन्य संत शोभन सरकार ने सबके साथ किया। इस समारोह के बाद सबको प्रसाद वितरण किया गया और आज से अनवरत चलने वाले भण्डारे में सबने हिस्सा लिया।


आध्यात्मिक आस्था का आंदोलन 
बृह्ममर्हूत से ही दूधीकगार का वातावरण गुंजरित हो रहे मंत्रों से ध्वनित हो रहा था। कार्तिक मास की शीतल समीर के झोंको के साथ यज्ञ वेदी से उठता सुगंधित धूम्र हर जन-मन को सुवासित करने वाला था। ध्वनि विस्तारक यंत्र से प्रसारित हो वेदपाठी बाह्मणों की वाणी महोत्सव मानने आये लोगों के यात्रा की थकान को तिरोहित कर दे रही थी। आसपास के जिलों से आये श्रद्घालु भी बीहड़ की बारात का आनंद ले रहे थे। चारो ओर प्रसारित हो रहे आध्यात्मिक आस्था के इस आंदोलन का अंग वहां उपस्थित हर आदमी स्वयं को अनुभव कर रहा है यह तथ्य सबकी बातों में तैर रहा था।


सब सरकार में समाया 

 महोत्सव में मौजूद हर कोई खुद को कुछ नहीं समझ रहा है जो कुछ है सब सरकार है जो हो रहा है जो होगा वह सब कुछ सरकार ही कर रहे है। मेला संचालन समिति के सदस्य हो या दुकानदार, यहीं के रहने वाले हों या बाहर से आये दर्शनार्थी सैकड़ों बीघे क्षेत्र में फैले मेले में मौजूद हर आदमी के लिये शोभन सरकार ही सब कुछ है सब कुछ उन्हीं में समाया है और सबको वही समायोजित कर संभाल रहे है। व्यवस्थापक, प्रबंधक, आदेशक और कार्यकर्ता भी वही है। यहां व्यवस्था संभाले स्वयंसेवक सब कुछ सरकार मय और सबको सरकार मय समझ कर सेवा कर रहे है। किसी से कुछ पूछने पर कोई कुछ नहीं बताता। ज्यादा पूछने पर सब सरकार या भगवान कर रहे है यह सुना देते हैं। इस समय स्वामी जी ही सबके सरकार और भगवान है।
(समाचार साभार-दैनिक जागरण)

26 अक्तू॰ 2009

फतेहपुर : दूधी कगार महोत्सव की तैयारियां परवान चढ़ी

वार्षिक आयोजन का रूप ले चुके दूधी कगार महोत्सव की तैयारियां परवान चढ़ी हुई है। शोभन सरकार के आध्यात्मिक निर्देशन में मा गंगा की कगार में होने वाला यह वार्षिक उत्सव शुक्ल पक्ष एकादशी से आरंभ होकर पूर्णमासी को संपन्न होगा। दो वर्षो में ही आसपास के जनपदों तक प्रचारित प्रसारित यह महोत्सव दूधीकगार आश्रम की प्रांतीय पहचान बनता जा रहा है।


वर्ष 2008 के पहले बीहड़ में लगने वाली हाट के जैसा रहा यह मेला गांव दूधीकगार और गुनीर जैसे आसपास के गावों तक ही सीमित था। बीते बरस यह लघु मेला महोत्सव बन गया। यहां आसपास के गांवों की जनता ही नहीं दूर दूरंत से जनसैलाब उमड़ पड़ा था। संत कई चमत्कार कर दिखाते है, सिद्घ संत शोभन सरकार का सानिध्य मिलते ही दो शताब्दी से आबाद इस आश्रम में अपार आदमी जुट गये।

दूसरे वर्ष आयोजित होने जा रहे इस मेले में लाखों लोग जुटेंगे ऐसा आयोजन समिति का विश्वास है। पांच दिन के लिये आयोजित होने वाले इस महोत्सव के लिये एक माह पूर्व से तैयारियां चल रही है। दर्जन भर ट्रैक्टर और सैंकड़ों मजदूर रात दिन तैयारियों में लगे हुये है, श्रृद्घालु भी आश्रम की सेवा में अपना सहयोग समर्पित कर रहे है। जीटी रोड से तीन किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित इस आश्रम के आसपास के सैकड़ों बीघे क्षेत्रफल में आयोजित होने वाले इस मेले में कई तरह के आकर्षण होंगे

29 को उद्घाटन- श्री सतगुरू दंगल कमेटी के अध्यक्ष रामभवन सिंह मोटू के मुतामिक 20 अक्टूबर को सुबह दस बजे जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक महोत्सव की शुरूआत करेगे। इसी दिन श्री माता चंद्रिका मंदिर बक्सर से भवानी की भव्य बारात श्री सदगुरु आश्रम दूधी कगार में आयेगी जिसमें रथ पर सवार मां का विग्रह होगा। भक्त और श्रद्घालु गाजे बाजे के साथ समारोह पूर्वक बारात लायेंगे। शोभन सरकार पूरे महोत्सव के समय इसी आश्रम में रहेंगे।

यह है महोत्सव में- मेले में जहा एक ओर हर छोटी बड़ी जरूरत की चीज मिल रही होगी वहीं दूसरी ओर वहां के वातावरण में मंत्र और ऋचायें गूंज रहीं होंगी। जहां रहट की आवाजें उस कगार में कोलाहल उत्पन्न करेंगी वहीं यज्ञ शाला से उठता सुंगधित धूम्र मेले में मौजूद हर जन को आध्यात्मिक सुवास से सराबोर करता जायेगा। मेले मनपसंद चीज खरीदी खाई जा सकेगी तो पांच दिन भण्डारा भी बराबर चलता रहेगा जिसमें कोई भी जाकर प्रसाद ग्रहण कर सकेगा। प्रभु प्रेमियों के लिये जहां रामलीला का मंचन किया जायेगा| वहीं पहलवानी प्रेमियों के लिये नामी पहलवानों की जोर आजमाइस देखने को होगी।

 मेले में प्रतिदिन चलने वाले भण्डारे के लिये सबके सहयोग से अब तक सैंकड़ों कुंतल खाद्य सामग्री, घी, तेल, चीनी, मेवा, मसाले एकत्र हो चुके हैं। जो मेजबान जनपद के अलावा बांदा, हमीरपुर, कौशांबी, इलाहाबाद, रायबरेली, उन्नाव, कानपुर आदि जनपदों से आने वाले दर्शनार्थियों, श्रद्घालुओं, भक्तों के लिये होगा।

13 अक्तू॰ 2009

फतेहपुर : गंगा की दशा और दिशा के लिए प्रयास और उनका परिणाम




जिले की सौ किलोमीटर की धरती को छूती हुई पतित पावनी मां गंगा की धार बह रही है। दो दर्जन से अधिक घाट व दो सैकड़ा कस्बा व गांवों को खुशहाली का सन्देश देने वाली गंगा आज प्रदूषण से कराह रही हैं। जीवनदायिनी नदी जो हजारों लोगों की जीविका का साधन थीं आज उसका पानी इतना विषैला हो गया है कि तटवर्ती गांवों के लोग गंगा के पानी का उपयोग नहीं कर रहे हैं।

पतित पावनी गंगा जिले में औंग के पास से प्रवेश करती हैं। शिवराजपुर पहला घाट है इसके बाद देवमई, गुनीर, कंसपुर, ब्रम्हशिला, आदमपुर, खुशरूपुर, भिटौरा, असनी, देवरी, कोटला, नौबस्ता मुख्य घाट हैं। दो सैकड़ा से अधिक गांव जीवनदायिनी नदी से जुड़े हुए हैं। इन घाटों में अमावस्या, पूर्णिमा, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण सहित अन्य धार्मिक पर्वो में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर डुबकी लगाते हैं।

शिवराजपुर में कार्तिक का ऐतिहासिक मेला लगता है जहां जिले ही नहीं कई जनपदों के श्रद्धालु आकर इस प्राचीन धार्मिक नगरी में मोक्षदायिनी पर डुबकी लगाने के बाद मीराबाई द्वारा स्थापित किये गये बिहारी जी के मंदिर के दर्शन करते हैं। शिवराजपुर में गंगा तट पर आधा दर्जन प्राचीन मंदिर उसकी ऐतिहासिकता के मूक गवाह हैं।

 
 
काशी, हरिद्वार के बाद भृगुधाम भिटौरा वह पवित्र घाट है जहां उत्तरवाहिनी गंगा हैं। पौराणिक ग्रन्थों में भी उत्तर वाहिनी गंगा के महात्म्य को दर्शाया गया है। भिटौरा के बारे में यह इतिहास है कि यहां भगवान विष्णु को लात मारने वाले भृगु मुनि ने तपस्या की थी। इनकी तपस्थली का प्रतीक एक मड़फी आज भी बनी हुई है। भिटौरा में पुराने पक्के घाट के साथ स्वामी विज्ञानानंद जी ने करोड़ों की लागत पर एक नया ओमघाट विकसित किया है।



  • जिले में पतित पावनी गंगा को प्रदूषित करने का मुख्य कारक शव प्रवाह है।
  • गंगा किनारे के गांव के लोग मरे जानवर भी नदी में डालकर प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं।
  • किसी भी श्मशान घाट पर इलेक्ट्रानिक शवदाह की व्यवस्था नहीं है। भिटौरा में लकड़ी का शवदाह गृह बनाया गया है, लेकिन उसमें शवों का दाह संस्कार इक्का-दुक्का ही हो पा रहे हैं। श्मशान घाट में जो अग्निदाह भी किये जाते हैं उसमें अधजली लकड़ी व अन्य गंदगी लोग गंगा जी में ही फेंक देते हैं।
  • शहर का सीवर लाइन तो गंगा में नहीं जा रहा है, लेकिन गंगा किनारे के जो गांव हैं उनका गंदा पानी नदी में ही पहुंच रहा है।
  • चौडगरा व मलवां की आधा दर्जन फैक्ट्रियों का गंदा पानी सीधे तो नहीं, लेकिन पाण्डु नदी के माध्यम से गंगा नदी में पहुंच रहा है।
  • शहरी सीवेज का गंगा को गंदा करने से कोई सरोकार नहीं है। शहरी सीवेज का पानी ससुर खरेदी नदी पर गिराया जा रहा है।
  • गंगा एक्शन प्लान के दौरान जिले में कोई भी काम नहीं कराया गया। सर्वे के बाद ही इस प्लान की इति श्री हो गयी।
  • गंगा एक्शन प्लान में जिले में कुछ भी खर्च नहीं हुआ न ही निर्माण कार्य कराया गया।
  • पतित पावनी मां गंगा के किनारे शिवराजपुर, भृगु मुनि की तपोस्थली भिटौरा, अश्रि्वनी कुमारों की नगरी असनी व नौबस्ता प्रमुख घाट हैं जो कि जिले के श्रद्धालुओं के लिए तीर्थ स्थल हैं। इन घाटों में बांदा, हमीरपुर से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
  • पौराणिक इतिहास को समेटे गंगा किनारे के मुख्य गांवों के विकास के लिए कोई भी कार्य नहीं कराया गया। शिवराजपुर को पर्यटक स्थल बनाने के लिए कार्य योजना बनायी गयी थी, लेकिन शासन से स्वीकृति न मिलने से वह भी धरी की धरी रह गयी। भिटौरा में सरकारी स्तर पर तो कोई प्रयास नहीं किये गये। स्वामी विज्ञानानंद ने जरूर करोड़ों की लागत पर ओमघाट को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया है। 

  • गंगा किनारे के हर गांव में श्मशान घाट बने हैं जहां कटरी ही नहीं दो तिहाई आबादी के शवों का दाह संस्कार किया जाता है। मुख्य रूप से भिटौरा के श्मशान घाट में प्रतिदिन पंद्रह से बीस शव आते हैं। इसके अलावा नौबस्ता व शिवराजपुर में भी अधिक संख्या में शवों का संस्कार होता है। किसी भी श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए पाण्डु नदी से गंगा को कचरा ही दान मिल रहा है। कानपुर व फतेहपुर के डेढ़ सौ से अधिक गांवों का गन्दा पानी व आधा दर्जन फैक्ट्रियों का कचरा इस नदी के माध्यम से गंगा में पहुंच रहा है। लोगों का मानना है कि बारिश में तो कोई बात नहीं अन्य महीनों में पाण्डु नदी में पानी नहीं गंदगी बहती है जो कि छिवली नदी से पांच किमी दूर गंगा में समाहित हो जाती है।
  • प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का न तो जिले में कार्यालय है और न ही गंगा के प्रदूषण को रोकने में इस बोर्ड का कोई सहयोग रहा है।

पर्यावरण संरक्षण के नाम पर हर वर्ष लाखों डकारने वाली संस्थाओं को जीवनदायिनी का प्रदूषण नजर नहीं आ रहा है। अलबत्ता यह जरूर है कि पिछले दो वर्षो से दैनिक जागरण की मुहिम से कई सामाजिक संगठन इस कार्य में आगे आये और प्रदेश का शायद यह पहला जनपद होगा जहां पिछले वर्ष शारदीय नवरात्र के बाद देवी प्रतिमाओं का भूविसर्जन कर निर्मल गंगा, अविरल गंगा की हुंकार भरी गयी। इस वर्ष तो नब्बे फीसदी देवी प्रतिमायें भू विसर्जित की गयीं।

ऐसा माना जा रहा है कि देवी प्रतिमाओं का जल विसर्जन रुकने से गंगा में जाने वाली लगभग पंद्रह सौ टन गंदगी बच गयी। इस कार्य में स्वामी विज्ञानानंद भागीरथ बनकर आगे आये। उन्होंने संतों की टोली के साथ गांव-गांव में भ्रमण कर शवों का विसर्जन रोकने व निष्प्रयोज्य पूजन सामग्री गंगा में न डालने का आहवान किया। भिटौरा में लकड़ी का शवदाह गृह बनवाया। नौबस्ता सहित अन्य घाटों में भी शव प्रवाह रुके इसके लिए वह शवदाह बनवाने की कार्ययोजना बनायी है। इस कार्य में अखिल भारतीय वैश्य एकता परिषद, हिन्दू महासभा, बजरंग दल, ब्राम्हण चेतना मंच का सहयोग रहा।

(साभार - दैनिक जागरण)

7 अक्तू॰ 2009

ऐतिहासिक खजुहा मेले में होती है रावण की पूजा

खजुहा कस्बा ऐतिहासिक घटनाओं और स्थानों को समेटे हुए है। कस्बे के मुगल रोड में विशालकाय फाटक और सरांय स्थित है। जो कस्बे की पहचान बना हुआ है। वहीं कस्बे के स्वर्णिम  अतीत के वैभव की दास्तां बयां कर रहा है। मुगल रोड के उत्तर में रामजानकी मंदिर, तीन विशालकाय तालाब, बनारस की नगरी के समान प्रत्येक गली और कुँए  अपनी भव्यता की कहानी कह रही है।

इस छोटे से कस्बे में करीब एक सौ अठारह शिवालय हैं। इसी क्रम में दशहरा मेले में होने वाली रामलीला के आयोजन में रावण पूजा भी अलौकिक और अनोखी मानी जाती है। यहां की रामलीला को देखने के लिए प्रदेश के कोने-कोने से श्रृद्धालु  एकत्रित होते हैं।खजुहा कस्बे की रामलीला जिले में  ही नहीं पूरे प्रदेश में ख्याति  प्राप्त है।

यहां पर दशहरा मेले पर अन्य स्थानों की तरह रावण को जलाया नहीं जाता, बल्कि रावण को पूजनीय  मानकर हजारों दीपों की रोशनी के साथ पूजा अर्चना की जाती है। कस्बे के महिलाएं और बच्चे भी इस सामूहिक आरती और पूजन कार्य में हिस्सा लेते हैं। इस अजीब उत्सव को देखने के लिए दूरदराज से लोगों जमावड़ा लगता है। वहीं रावण के साथ अन्य पुतलों को नगर के मुख्य मार्गों  में भ्रमण कराया जाता है।

इस ऐतिहासिक मेले का शुभारम्भ भादो मास के शुक्ल  पक्ष की तृतीया (तीजा) के दिन तालाब से लाई गई मिट्टी एवं कांस से कुंभ निर्माण कर गणेश की प्रतिमा निर्माण कर दशहरा के दिन पूजा अर्चना की जाती है। खजुहा मेले में निर्मित होने वाले सभी स्वरूप नरई, पुआल आदि समान से बनाए जाते हैं। इन स्वरूपों के चेहरों की रंगाई का कार्य खजुहा के कुशल पेंटरों द्वारा किया जाता है। जबकि रावण का शीश तांबे से बनाया जाता है। दशमी के दिन से गणेश पूजन से शुरू होने वाली रामलीला परेवा द्वितीया के दिन राम रावण युद्ध के बाद इस ऐतिहासिक रामलीला की समाप्त हो जाती है।

खजुहा की रामलीला का विशेष महत्व है। जहां रावण को जलाने के स्थान पर इस की पूजा की जाने की परंपरा है। तांबे के शीश वाले रावण के पुतले को हजारों दीपों की रोशनी प्रज्वलित करके सजाया जाता है। इसके बाद ठाकुर जी के पुजारी द्वारा श्रीराम  के पहले रावण की पूजा की जाती है। जहां मेघनाथ का 25 फिट ऊंचा लकड़ी के पुतले की सवारी कस्बे के मुख्य मार्गों  में निकाली जाती है। वहीं 40 फुट लंबा कुंभकरण व अन्य के पुतले तैयार किए जाते हैं।