फतेहपुर : आमों की बौर देख सरसों का हर खेत संत होता है।।
फतेहपुर के बिन्दकी कस्बे में गुरुवार को नगर के महरहा रोड पर बसंत पंचमी के अवसर पर एक कवि गोष्ठी हुयी। गोष्ठी में कवियों ने ऋतुराज के आगमन पर काव्य की ऐसी रसधार बहाई, जिससे श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये।
कवि गोष्ठी की शुरुआत करते हुये वरिष्ठ साहित्यकार वेद प्रकाश मिश्र ने बसंत की आहट की सुगबुगाहट को कुछ यूं व्यक्त किया-
उधर जनपद की अग्रणी साहित्यिक संस्था यायावर के तत्वावधान में बसंत पंचमी के अवसर पर मां सरस्वती की विधिवत पूजा-अर्चना कर कार्यक्रम आईटीआई रोड स्थित डा. चंद्रकिशोर पांडेय के आवास में हुआ।
इस अवसर पर काव्य गोष्ठी की शुरुआत करते हुये डा. बालकृष्ण पांडेय ने अपनी गजलों के माध्यम से युग की पीड़ा को अभिव्यक्ति दी-
कवि गोष्ठी की शुरुआत करते हुये वरिष्ठ साहित्यकार वेद प्रकाश मिश्र ने बसंत की आहट की सुगबुगाहट को कुछ यूं व्यक्त किया-
शीत का जब अंत होता है, बागों में बसंत होता है। आमों की बौर देख सरसों का हर खेत संत होता है।।कवि कासिम हुसैन ने अपने भाव कुछ इस तरीके से व्यक्त किये-
आयी बसंत बहार की है। फूलों की सुगंध खूब छायी है।कवि मृत्युंजय पांडेय राजन ने मानव जीवन के लक्ष्य के बारे में अपनी रचना के जरिये समझाने का प्रयास किया-
आना-जाना मौज मनाना है क्या लक्ष्य यही जीवन का? अर्थ शक्ति का संचय ही क्या पुरुषार्थ बना जीवन का!कवि व साहित्यकार उमाशंकर ओमर ने कहा कि-
जब मौसम कुछ गुनगुन होइगा, तो हम जाना आवा बसंत। जाचैं परखैं का निकर परेन कि कहां-कहां छावा बसंत।।कवि सुनील पुरी ने ईश्वर से देश की खुशहाली मांगी-
मानवता के मन मंदिर में, ज्ञान का दीप जला दो। करुणा निधान मेरे भगवान, मेरे भारत को स्वर्ग बना दो।वयोवृद्ध कवि रहमत उल्ला नजमी ने पढ़ा कि
नया बसंत नई कविता ले के आया हूं, अवस्था देखिये मेरी, समंदर पी के आया हूं।कवि गोष्ठी की अध्यक्षता देवदत्त वैद्य देवेंद्र तथा संचालन वेदप्रकाश मिश्र ने किया। कार्यक्रम का आयोजन महेश्वरी पांडेय ने किया था।
उधर जनपद की अग्रणी साहित्यिक संस्था यायावर के तत्वावधान में बसंत पंचमी के अवसर पर मां सरस्वती की विधिवत पूजा-अर्चना कर कार्यक्रम आईटीआई रोड स्थित डा. चंद्रकिशोर पांडेय के आवास में हुआ।
इस अवसर पर काव्य गोष्ठी की शुरुआत करते हुये डा. बालकृष्ण पांडेय ने अपनी गजलों के माध्यम से युग की पीड़ा को अभिव्यक्ति दी-
दीपक में तो जान बहुत है, जलने का अरमान बहुत है। पांव जमाये पोध कहता, घर बाहर तूफान बहुत है।मधुराक्षर संपादक कवि बृजेंद्र अग्निहोत्री ने पढ़ा-
मां शारदे के सुत हैं कब तक सहेंगे, समाज के बदन की खाज। क्या देख सकेंगे हम समाज पर गिरती गाज।वरिष्ठ कवि डा. चंद्रकुमार पांडेय ने प्रेम-सौंदर्य को मालिक उपमानों में प्रस्तुत किया-
तुम सांध्य मलय की सुरभि मा व हो ऊषा की सुकुमार किरन, किम्बा सुरधनु की छाया हो या गोधूलि में क्षितिज मिलन।कृष्ण कुमार त्रिवेदी ने सामाजिक विसंगतियों पर चोट करते हुये कहा-
मले तमाखू से गये, कटे सरौती बीच।श्री चंद्रशेखर शुक्ल ने अपनी आध्यात्मिक रचना के द्वारा भारतीय संस्कृति का स्मरण किया-
बाल वृद्ध युवा सभी अति पीर से पीड़ित हुये हैं। क्या नहीं मधुमास आया।श्री आनंद स्वरूप श्रीवास्तव अनुरागी ने पढ़ा-
हर्षित मन से मृदुल भावना, प्रेम भरा देती आशीष।इस मौके पर यायावर के मंच से जनपद के वरिष्ठ कवि आनंद स्वरूप श्रीवास्तव अनुरागी की दो पुस्तकों का विमोचन डा. बालकृष्ण पांडेय ने किया।