24 मार्च 2010

फतेहपुर : नगर पालिका की सालिड वेस्ट परियोजना का काम शुरू होने जा रहा

शहर को साफ सुथरा रखने के लिये शासन की ओर से नगर पालिका की सालिड वेस्ट  परियोजना का काम सोमवार से शुरू होने जा रहा है। इसके लिये शासन से हरी झंडी भी मिल गयी है। चेयरमैन अजय अवस्थी ने बताया कि योजना के शुरू होने के बाद शहरवासियों को गंदगी की समस्या से निजात मिलेगी।

बताते चलें कि बहुप्रतीक्षित नौ करोड़ 37 लाख की  लागत वाली सालिड वेस्ट  परियोजना का उददेश्य घरों से निकलने वाले कूड़े को कम्पोस्टिंग  कर खाद तैयार करना तथा चिकित्सीय कचरे का प्रबंधन करना है। इसमें अस्सी फीसदी केंद्र सरकार और दस दस प्रतिशत पैसा राज्य सरकार और नगर पालिका का लगना है।

योजना के तहत करीब चार करोड़ की पहली किश्त इलाहाबाद की कार्यदायी संस्था सीएनडीएस को अवमुक्त करा दी गयी है। जलकल प्रभारी केशव प्रसाद ने बताया कि प्लांट लगाने के लिये भिटौरा विकास खंड के मलाका गांव में स्थान चिन्हित कर लिया गया हैं जहां सोमवार से काम शुरू कर दिया जायेगा। 

बताते चलें कि योजना के कियान्वयन न होने से नगर की सफाई व्यवस्था पूरी तरह तार तार हो गयी है। जगह जगह लगे कूड़े के ढेर पालिका की सफाई व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं। वहीं गंदगी से लोगों को संक्रामक  बीमारियों का खतरा मंडराता रहता  है। फतेहपुर जैसे कम वरीयता वाले शहरों में ऐसी योजनाओं का क्रियान्वयन कैसे और किस रूप में होगा ....यह देखने वाली बात होगी | तब तक सभी की शुभकामनाएं !

22 मार्च 2010

गले में बंधी घंटी की रूनझुन सुन कर समझ में आ जाता था कि.....

आन और सान का प्रतीक हाथी अब नहीं दिखता है। कभी गांवों नगरों में बहुतायत में दिखने वाले गजराज गायब हो रहे हैं। कभी शादी विवाहों की शान बनने वाला अब गाहे बगाहे दिखना भी बंद हो रहा है।

एक समय था जब दरवाजे पर बंधा हुआ हाथी हैसियत का जीता जागता नमूना होता था। जिसके पास यह भारी भरकम जानवर होता था उसकी रहीशियत की चर्चा क्षेत्र में होती थी। हाथी का होना अपने आप में एक पहचान होती थी।
एक वक्त था जब हाथी गांवों में आता तो गले में बंधी घंटी की रूनझुन सुन कर समझ में आ जाता था कि हाथी आया है और फिर उसके पीछे ताली बजाते शोर मचाते बच्चों का हुजूम लग जाता था। और वह वक्त भी दूर चला गया कि जब गांवों की गलियों से गुजर रहे हाथी की चिग्घाड़ सुनने के लिये लोग एक-एक टोकरी गुड़ खिला देते थे। पर अब यह सब बीते वक्त की बातें हुई जा रही हैं।  
हाथी पालना कभी क्षेत्र के कुछ लोगों के लिये गर्व की बात हुआ करती थी पर अब ऐसा नहीं है। इतिहास की इबारत पढ़ने पर पता चलता है कि शान का साथी हाथी कालांतर में उसकी देखभाल में आने वाले भारी भरकम खर्च के चलते लोगों का शौक मंद पड़ गया।  हाथी पालने के शौकीन कई लोग रहे हैं जिनके यहां पीढ़ी दर पीढ़ी गजपालन होता रहा है। हाथी पालने वाले को नम्बरदार कह पुकारा जाता था।