श्याम लाल गुप्त पार्षद लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
श्याम लाल गुप्त पार्षद लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

14 अग॰ 2018

Fatehpur Live : जेल में रचा गया था देश का झंडा गीत ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’, स्वतंत्रता संग्राम को भी आल्हा छंद में गया लिखा

फतेहपुर Live : शहर का हजारीलाल फाटक स्वतंत्रता के आंदोलन का केंद्र बिंदु रहा है। अंग्रेजी हुकूमत के फरमान को धता बताते हुए क्रांतिकारियों ने यहां जुलूस निकाला तो उन्हें जेल भेजा गया। जेल में भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ और देशभक्ति गीतों से सभी के रक्त प्रवाह को गति देने का काम किया। जेल में बंद लोगों में अतिउत्साह देख अंग्रेजी अफसर भी हैरत में पड़ गए थे।


जिले में कांग्रेस का सूत्रपात गणोश शंकर विद्यार्थी की प्रेरणा से सन 1916 में हुआ। इतिहासकार डॉ. ओम प्रकाश अवस्थी बताते हैं कि झंडा गीत के रचनाकार नर्वल कानपुर निवासी श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ पहली बार जिले के कांग्रेस के अध्यक्ष और बाबू बंशगोपाल ने सचिव की बागडोर संभाली। श्यामलाल गुप्त ने फतेहपुर के जिला जेल की बैरक नंबर नौ में रहते हुए ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’ गीत की रचना की, जो देश का झंडा गीत स्वीकार किया गया।


कांग्रेस के सचिव बाबू बंशगोपाल मोतीलाल नेहरू से मुलाकत करने इलाहाबाद के लिए निकले। इसकी भनक लगते ही उनको फतेहपुर रेलवे स्टेशन में बंदी बना लिया गया। फिर क्या था, विरोध में पूरे शहर में दुकानें बंद कर हड़ताल कर दी गई थी।


■ स्वतंत्रता संग्राम को आल्हा छंद में लिखा : बाबू बंशगोपाल मूल रूप से इलाहाबाद के रहने वाले थे। फतेहपुर में वकालत शुरू करने के साथ वह आंदोलन में पूरी तरह से कूद गए व नेतृत्व संभाला। असहयोग प्रस्ताव पर उन्होंने 1921 में वकालत का रजिस्ट्रेशन वापस कर दिया। स्वतंत्रता आंदोलन को आल्हा छंद में लिखकर उन्होंने इस लड़ाई को आमजन तक पहुंचाने के प्रयास किया। 

9 सित॰ 2009

फतेहपुर : झण्डा गीत के रचयिता श्याम लाल गुप्त पार्षद की बुधवार को 112वीं जयंती मनायी गयी

झण्डा गीत के रचयिता श्याम लाल गुप्त पार्षद की बुधवार को 112वीं जयंती मनायी गयी । उन्नीस वर्षो तक लगातार श्री गुप्त जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। 1921 में जब आजादी का राष्ट्रीय आन्दोलन चरम पर था उस समय उन्होंने जिला कारागार की बैरिक नंबर नौ पर विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा गीत की रचना की थी।
कानपुर नगर के नर्वल गांव में 9 सितंबर 1896 में श्री पार्षद जी का जन्म हुआ। गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आने के बाद श्री पार्षद कांग्रेस के नागपुर सम्मेलन में प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया वहीं पर उन्हें फतेहपुर जनपद में कांग्रेस का कार्य संभालने की जिम्मेदारी दे दी गयी।
आजादी के इस दीवाने ने 1921 में यह व्रत लिया था कि जब तक देश स्वतंत्र नहीं होगा वह नंगे पांव रहेंगे, धूप व बारिश में छाता नहीं लगाऊंगा और न ही कंधे पर अंगौछा रखूंगा। 21 अगस्त 1921 को पहली बार उन्हें राजा असोथर के महल में गिरफ्तार किया गया। 1924 में अंग्रेजों के विरुद्ध व्यंग्य रचना करने पर उन पर पांच सौ रुपये का जुर्माना किया गया। 1930, 1944 में उन्हें पुन: जेल जाना पड़ा। आजादी की लड़ाई में श्री पार्षद की कर्मभूमि जनपद ही रही। 1916 से 1946 तक स्वाधीनता संग्राम के आन्दोलन विशेषकर नमक सत्याग्रह व भारत छोड़ो में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभायी। 
इतिहास के पन्नों में उस समय जनपद का नाम जुड़ गया जब उन्होंने चौक स्थित हजारी लाल फाटक में जनचेतना के लिए विजयी विश्व तिरंगा गीत रचना का मन बनाया। इसी दौरान उन्हें जेल भेज दिया गया। बैरिक नंबर 9 पर उन्होंने तीन रंगों के झंडे की शान को हर मन की तरंग से जोड़कर राष्ट्रीय चेतना लाने के लिए नौ पंक्तियों के झंडा गीत की रचना की। कामयाबी उस समय मिली जब 1925 में कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में श्री पार्षद जी की रचना को झंडा गीत घोषित कर दिया गया। 
15 अगस्त 1952 को लाल किला से श्री पार्षद जी ने इस झंडा गीत का गायन किया। 19 अगस्त 1972 को उन्हें इस गीत की रचना पर अभिनंदन व ताम्रपत्र प्रदान किया गया। छब्बीस जनवरी 1973 को श्री पार्षद जी को भारत सरकार द्वारा पद्म श्री की उपाधि से अलंकृत किया गया। जनपदवासियों को इस बात का फक्र है कि समूचे राष्ट्र को राष्ट्रीय झंडा गीत देने वाले श्री पार्षद जिले की माटी से जुड़े रहे। उन्हें पंडित मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल, गोविंद वल्लभ पंत जैसे नेताओं का सानिध्य प्राप्त हुआ।

11 नव॰ 2008

भारत छोड़ो आंदोलन का केन्द्र बिन्दु शहर के चौक स्थित हजारी लाल का फाटक था

1857 से शुरू हुई आजादी की जंग के अंतिम मुकाम 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का केन्द्र बिन्दु शहर के चौक स्थित हजारी लाल का फाटक था। बलिया के कर्नल भगवान सिंह ने जिले के आठ सौ से अधिक देशभक्तों की फौज की कमान संभाली थी। झंडा गीत के रचयिता श्याम लाल गुप्त पार्षद ने आजादी की इस चिंगारी को तेज करने का प्रयास किया। शिवराजपुर का जंगल क्रांतिकारियों की शरण स्थली था। बताते हैं कि यहीं पर गुप्त रणनीति तय होती थी और फिर अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने के लिये क्रांतिकारियों के दल निकल पड़ते थे।

नौ अगस्त उन्नीस सौ बयालीस को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जिले की महती भूमिका होने पर



1942 की लड़ाई में पूर्वाचल के जनपदों सहित बांदा व हमीरपुर के क्रांतिकारियों ने जिले को ही रणभूमि के रूप में स्वीकारा तभी तो बलिया के कर्नल भगवान सिंह, चीतू पांडेय जैसे क्रांतिकारी यहां के देशभक्तों का साथ देकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को तेज किया। जिले के क्रांतिकारी गुरुप्रसाद पांडेय, बंशगोपाल, शिवदयाल उपाध्याय, दादा दीप नारायण, शिवराज बली, देवीदयाल, रघुनंदन पांडेय, यदुनंदन प्रसाद, वासुदेव दीक्षित भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व कर जिले में एक माहौल पैदा कर दिया तभी तो एक-एक करके लगभग आठ सौ से अधिक की फौज क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेजों की सत्ता को हिला दिया। चौक स्थित हजारीलाल का फाटक क्रांतिकारियों के लिये गुप्तगू का मुख्य केन्द्र था। बताते हैं कि यहीं पर कानपुर व पूर्वाचल के क्रांतिकारी नेता आकर अंग्रेजों को देश से भगाने के लिये क्या करना है इसकी रणनीति बताते थे।

अंग्रेजी शासकों को हजारी लाल फाटक की जानकारी हो गयी थी। कई बार यहां छापा मारकर क्रांतिकारियों को दबोचने के प्रयास किये गये। आखिर क्रांतिकारियों को गुप्त स्थान खोजना ही पड़ा। शिवराजपुर के जंगल में क्रांतिकारियों का मजमा लगता था। बताते हैं कि अस्सी हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में विस्तारित जंगल को ही क्रांतिकारियों ने अपना ठिकाना बनाया। भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत गोपालगंज के फसिहाबाद स्थल से की गयी। इसके अलावा खागा जीटी रोड को भी केन्द्र बिन्दु बनाया गया। जहानाबाद, हथगाम, खागा सहित दो दर्जन से अधिकस्थानों पर क्रांतिकारियों ने धरना-प्रदर्शन कर अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिये ललकारा। इस दरम्यान लगभग चार सौ लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। नेतृत्व करने वाले आधे से अधिक नेता जब जेल चले गये तो अंगनू पांडेय, बद्री जैसे क्रांतिकारियों ने मोर्चा संभाला।


(साभार - दैनिक जागरण)