17 सित॰ 2008

राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी का एक संस्मरण

 

एक दिन एंग्लो विद्यालय फतेहपुर में खूब सजावट की गई। कुछ समय बाद बच्चों को मिठाई वितरित की जाने लगी। धीरे-धीरे विद्यालय के अंदर और बाहर जनता को पता चला कि प्रिन्स आफ वेल्स भारत में कहीं आए हैं और उनके आने की खुशी यहां मनाई जा रही है। शहर में ऐसे लोग भी थे जो इसे खुशी का कारण नहीं मानते थे। छल तथा बल से शासन छीनने वालों की खुशी में बटने वाली मिठाई उनके लिए अपमान का प्रतीक थी। गांधी जी ने उनके आगमन का स्वागत नहीं किया। देश में ऐसे लोग भी थे जो उन्हे काले झंडे दिखा कर उनके आगमन के प्रति अपना विरोध दर्ज करा रहे थे। कुछ लोग शासकों के पक्षधर थे तो कुछ विरोधी।

विरोधी लोग मन ही मन लाट साहब के आगमन को अपनी खुशी नहीं मानते थे, लेकिन शासन से बटने वाली मिठाई वापस करने का साहस वे नहीं जुटा पा रहे थे। ऐसा कर वे संभावित और आशंकित विपत्तियां निमंत्रित नहीं करते थे, अत: इस तमाशे को चुपचाप देख रहे थे। तभी सोहनलाल ने चिल्लाकर कहा, ''मुझे नहीं चाहिए यह मिठाई। यह हमारा अपमान है। हमें जलाने वाले ही नमक छिड़क रहे है।'' सहसा सन्नाटा छा गया। मिठाई बंाटने वाले रुक गए। मिठाई लिए हाथ मिठाई फेंकने लगे और जो मिठाई लेने के लिए एक लंबी लाइन में लगे थे वे छिटककर हट गए। लड़कों का जुलूस फतेहपुर की गलियों में नारे लगाता घूमने लगा। सोहनलाल इस जुलूस के नेता थे।

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साभार - जागरण - याहू - इंडिया

2 टिप्‍पणियां:
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  1. अच्छा है। आप द्विवेदीजी के बारे में संस्मरण लिखिये। विकिपीडिया पर द्विवेदी जी वाला पेज अपडेट करिये! अपने जनपद के बारे में अधिक से अधिक लिखिये।

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