13 सित॰ 2008

फतेहपुर के साहित्यकार कृष्ण कुमार त्रिवेदी के हिन्दी पर विचार

 

हिन्दी का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह रहा है कि उसे अपनों के ही प्यार से वंचित रहना पड़ा है। राष्ट्रभाषा का गौरवशाली पद पाकर भी वह उस पर प्रतिष्ठित नहीं हो पा रही है। उसकी एक से एक कमियाँ निकालने वाले उसके अपने ही हैं। जनगणना में उसके बोलने वालों में उसकी बोलियाँ/सहभाषायें में (राजस्थानी, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी, मैथिली, आदि) बोलने वालों को नहीं जोड़ा जाता । धर्म और सम्प्रदाय के कारण वे लोग भी उसे अपनी मातृभाषा नहीं लिखाते जो उसके अतिरिक्त और कोई भाषा जानते ही नहीं। प्रपत्रों में मातृभाषा का स्तम्भ तो होता है। भाषा-ज्ञान का नहीं, कि उससे हिन्दी बोलने और जानने वालों की संख्या अत्याधिक बढ़ जाने की आशंका रहती है। अँगरेज़ी माध्यम के विद्यालय सबसे अधिक हिन्दी भाषी क्षेत्रों में ही खुल रहे हैं, उसके अपनों के उसकी ओर से मुँह मोड़ लेने के कारण। प्रकाशन की आज की स्थिति में केवल लेखन के भरोसे जी सकना हिन्दी के लिए संभव नहीं है।

आगे कहते हैं______
फिजी, मारीशस सुरीनाम, गुयाना आदि में प्रवासी भारतीयों ने अपनी भाषा को न केवल जीवित रखा है वरन उसे निष्ठापूर्वक पुष्पित और पल्लवित भी किया है। वहाँ के हिन्दी-साहित्य के बारे में कभी-कभार कहीं कोई लेख आदि पढ़ने को मिल जाए तो मिल जाए। कभी वर्षों में, कृतार्थ करने के भाव से प्रकाशित, कोई रचना भी शायद देखने को मिल जाए, बिना लेखक के किसी परिचय या चित्र आदि के। विश्व हिन्दी सम्मेलन के प्रयासों से प्रवासी हिन्दी-लेखकों के बारे में यहाँ कुछ जानकारी हो पायी है और वहाँ की एकाध साहित्यिक कृतियाँ भी पढ़ने को मिल गयी है। इस सबसे अनुमान लगा है कि वहाँ भी साहित्य की लता पूरी गति से सदैव गतिशील रही है ।

त्रिवेदी जी का कहना है________
भाषा के विकास की यह प्रथम शर्त है कि उसके साहित्य को जानने-समझने का प्रयास से, उसके साहित्यकारों को उचित सम्मान मिले तथा उसके साहित्य का प्रचार-प्रसार हो। और सबसे रोचक तथ्य यह है कि पाठ्यक्रम में सम्मिलित लेखकों को ही सामान्य जन लेखक मानते हैं। यहाँ एक बात और ध्यान में रखनी होगी कि प्रवासी-साहित्य का अर्थ वहाँ की मिट्टी में रचा-बसा साहित्य ही है। दूतावासों के कर्मचारियों और अनुबंध पर सेवा- कार्य कर रहे भारतीयों को उसका अपहरण नहीं करने दिया जा सकता । अपने दाय का संरक्षण-संवर्द्धन करके ही हम वास्तविक रूप से समृद्ध हो सकेंगे।


श्री कृष्ण कुमार त्रिवेदी जी पूरा लेख पढने के लिए यंहा चटकाएं
बताते चले की फतेहपुर की साहित्यिक शख्सियत होने के आलावा वह महर्षि विद्या मन्दिर फतेहपुर के प्रधानाचार्य भी रह चुके हैं , और सम्प्रति पुलिस माडर्न स्कूल फतेहपुर के प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत हैं

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