7 नव॰ 2008

गंगा अब मैली नहीं रहेंगी

 

जीवनदायिनी मां गंगा अब मैली नहीं रहेंगी। कुछ ऐसी ही खुशियां संजोये गंगा भक्त उस समय बल्लियों उछल पड़े जब सुना कि प्रधानमंत्री ने मोक्षदायिनी को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दिया है। सबका पाप और ताप धोते-धोते मैली होती जा रही गंगा के अस्तित्व को लेकर आम व्यक्ति भी गंगा बचाने के लिये आगे गये थे। राष्ट्रीय नदी घोषित हो जाने के बाद संत हों या संगठन सभी यही कहते हैं कि अब सामाजिक पहल ही रंग लायेगी। आस्था के नाम पर गंगा में फैलाये जा रहे प्रदूषण को रोकने के लिये अब कड़ा कानून लागू करना होगा तभी शव प्रवाह सहित आस्था के नाम पर प्रवाहित की जाने वाली गंदगी रुक पायेगी।

सुरसरि का बिगड़ता जा रहा स्वरूप मानवीय संवेदनाओं को तो झकझोर ही रहा है अविरल निर्मल बहने वाली सतत गंगा का अस्तित्व भी संकट में आता दिखने लगा था। जिले में अस्सी किमी क्षेत्रफल में भागीरथी की अविरल धार बहती है। भृगुधाम भिटौरा में उत्तर वाहिनी गंगा हैं जो कि गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक में मात्र तीन स्थानों में हरिद्वार काशी में ही हैं। उत्तरवाहिनी गंगा होने के कारण भिटौरा घाट में गंगा में डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या कुछ ज्यादा ही रहती है।यूँ तो जिले में टेनरियों नाले के गंदे पानी से सुरसरि का पानी मैला नहीं हो पाता है, लेकिन यहां आस्था के नाम पर जो प्रदूषण फैलाया जाता है उसी से मां का आंचल गंदा हो रहा है। भिटौरा के श्मशान घाट में प्रतिदिन आठ से दस शव प्रवाह किये जाते हैं। शव के साथ आने वाली गंदगी भी मोक्षदायिनी के तट पर फेंक दी जाती है जो सड़ांध से पानी को मैला करने के साथ दुर्गध भी फैलाती है। इसी प्रकार नौबस्ता, शिवराजपुर, कोटिया, गुनीर आदि गंगा घाटों में शवों के प्रवाह से पानी को मैला किया जाता है।

निष्प्रयोज्य पूजन सामग्री के साथ मूर्तियों के विसर्जन से गंगा को मैली होने से बचाने के लिये जागरण ने गंगा को बचाना है का अभियान जो चलाया उससे काफी हद तक जागरूकता हुई। दुर्गा पूजा महोत्सव में पहली बार एक सैकड़ा से अधिक मूर्तियों का भू-विसर्जन करके गंगा भक्तों ने पतित पावनी को बचाने की जो पहल की आज उसे राष्ट्रीय धरोहर के रूप में स्वीकारने के साथ ही भक्तों का उत्साह चौगुना हो गया है। आखिर उनकी छोटी सी आहुति रंग लायी। शायद यह सोचकर वह बल्लियों उछल रहे हैं। भिटौरा स्थित ओम घाट में स्वामी विज्ञानानंद के नेतृत्व में संतों ने मां गंगा की पूजा, अर्चना कर यह संकल्प लिया कि राष्ट्रीय धरोहर बनी मोक्षदायिनी नदी को हम कभी गंदा नहीं होने देंगे। स्वामी विज्ञानानंद ने प्रधानमंत्री की इस पहल पर बधाई देते हुए कहा कि हमारी नहीं मां गंगा की पुकार दिल्ली की कुर्सी में बैठे जिम्मेदार लोगों तक पहुंच गयी। अब हम सभी का यह नैतिक दायित्व बनता है कि वह गंगा नदी को मैला होने दें।

2 टिप्‍पणियां:
Write टिप्पणियाँ
  1. बिल्कुल सर, नैतिक दायित्व बनता ही है. बढ़िया आलेख!!

    जवाब देंहटाएं
  2. सभी नदियाँ तभी स्वस्थ रह सकती हैं जब कि उन में गंदगी डाला जाना बिलकुल बंद हो। इस के लिए देश में सांस्कृतिक आंदोलन चलाना होगा। साथ ही सरकारों, नगर निगमों, नगर पालिकाओं और पंचायतों को सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी बस्ती का मैला पानी नदियों में न जाए।

    हो सके तो इस के लिए सख्त कानून भी बनाना पड़ेगा।

    जवाब देंहटाएं