7 नव॰ 2008

परिषदीय स्कूलों के शिक्षकों में नेताओं की एक लंबी श्रंखला

 

नौनिहालों के भविष्य को संवारने के लिये हर माह अठारह से बीस हजार रुपये सरकार के खजाने से लेने वाले परिषदीय स्कूलों के शिक्षकों में नेताओं की एक लंबी श्रंखला हो गयी है। शिक्षक से नेता बनने का ठप्पा क्या लगा पढ़ाना इनके लिये दोयम दर्जे का काम हो गया है। शिक्षकों की समस्यायें निपटाने के लिये कार्यालय के चक्कर काटना नेतागीरी में ही ज्यादा समय बीतता है। माह में बीस दिन स्कूल खुलते हैं और यह शिक्षक नेता बमुश्किल दस दिन पहुंचते हैं, शेष दिन यह कहकर नहीं जाते कि संगठन का काम निपटा रहे हैं। आखिर नेता जी हैं स्कूल के प्रधानाध्यापक भी कुछ नहीं कह पाते। हाजिरी पूरे दिन की लग जाती है। डिप्टी साहब भी पहुंचते हैं तो उनसे भी नेता जी की मोबाइल में ही बात हो जाती है और मामला ठीक हो जाता है।

परिषद के प्राथमिक जूनियर विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या लगभग तीन हजार है। संगठनों की संख्या को यदि जोड़ें तो यह भी आधा दर्जन से ऊपर पहुंच रहे हैं। प्राथमिक शिक्षक संघ तो एक बड़े संगठन के रूप में खड़ा ही है इसके अलावा जूनियर में शिक्षक संघ के दो समानांतर गुट बने हुए हैं। प्राथमिक में शैक्षिक महासंघ शिक्षक कल्याण परिषद के नाम से संगठन है। जिला इकाई से लेकर ब्लाक इकाई तक संगठनों का जो ढांचा है उसमें तकरीबन एक हजार ऐसे शिक्षक हैं जिनमें नेता का ठप्पा लगा है। पूर्व पदाधिकारी भी जोड़ लिये जायें तो यह संख्या बारह सौ से अधिक पहुंच जायेगी। इस तरह से यह देखा जाये तो हर तीसरा शिक्षक नेता है। शिक्षक से नेता बन गये परिषदीय शिक्षकों के हाल यह हैं कि चालीस फीसदी तो पहले पढ़ाना फिर नेतागीरी का फार्मूला अपनाये हुए हैं, लेकिन साठ फीसदी ऐसे शिक्षक नेता हैं जो पढ़ाने को दोयम दर्जे का काम मान रहे हैं। संगठन की आड़ पर वह कभी-कभार ही स्कूल जाते हैं। यदि स्कूल में रहते हैं तो कक्षा लेना वह अपने कद के मुताबिक नहीं समझते।

जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा हर तीन माह में कराये जा रहे स्कूलों के मूल्यांकन में ऐसे स्कूल जहां शिक्षक नेता नियुक्त हैं बी सी श्रेणी में हैं। अपवाद के रूप में चार-: नेताओं वाले विद्यालय श्रेणी में पहुंच गये हैं शेष स्कूलों की शैक्षिक गुणवत्ता दोयम तीसरे दर्जे की है। फिसड्डी से एक सीढ़ी लांघकर तीसरे दूसरे नंबर पर आखिर नेता जी के दम-खम पर ही विद्यालय पहुंचा यही सोचकर प्रधानाचार्य अन्य शिक्षक भी शिक्षक नेता के स्कूल आने पर चुप्पी साधे रहते हैं। बेसिक शिक्षा विभाग का शिकंजा भी इन शिक्षक नेताओं पर नहीं कस पाता है। एक तो अधिकारियों की चौखट में हर दूसरे-तीसरे दिन दस्तक देते रहते हैं दूसरा सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी से इनकी इतनी पकड़ मजबूत रहती है कि वह निरीक्षण के पहले दूरभाष से शिक्षक नेताओं को सब-कुछ बता देते हैं। बताते हैं कि जिले में पंद्रह सौ अट्ठानबे परिषदीय स्कूल हैं जिसमें से बारह सौ से अधिक विद्यालय बी सी श्रेणी में ही वर्षो से बने हुए हैं। श्रेणी के विद्यालयों की संख्या बमुश्किल तीन सौ पहुंच रही है। सर्व शिक्षा अभियान में वैसे भी बीस फीसदी शिक्षकों का पेशा ही बदल दिया गया है। दो सौ से अधिक शिक्षक भवन निर्माण की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं जिनका कक्षाओं से कोई लेना-देना नहीं है। ठेकेदार बने यह शिक्षक एक स्कूल तैयार करने के बाद मुख्यालय में दूसरे स्कूल के निर्माण की जुगाड़ में ही लगे रहते हैं और लगभग इतने ही शिक्षकों को ब्लाक न्याय पंचायत समन्वयक की जिम्मेदारी दी गयी है जो पढ़ाने-लिखाने के बजाय आंकड़ों की बाजीगरी में ही लगे रहते हैं।

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